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Traffic In Delhi: There Are Many Difficulties In The Way Of Public Transport – दिल्ली में आवागमन : सार्वजनिक परिवहन की राह में हैं कई मुश्किलें, मंजिल पर पहुंचना है दूभर

सार

आबादी में बढ़ोतरी के मुताबिक नहीं बढ़ सकी परिवहन सुविधा। नाकाफी साबित हो रहे हैं तमाम साधन।

दिल्ली में दिख जाते हैं देहात जैसे दृश्य…
– फोटो : अमर उजाला

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बढ़ती आबादी के साथ-साथ परिवहन की सुविधाएं तो बढ़ीं फिर भी मेट्रो स्टेशन, बस स्टॉप या दफ्तर से दिल्ली की कॉलोनियों या सेक्टर तक पहुंचने की राह आसान नहीं हुईं। शाम हो या सुबह (भोर), अंतिम छोर तक पहुंचने के लिए आबादी के लिहाज से परिवहन विकल्पों की कमी से रोजाना लाखों यात्रियों को मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। लास्ट माइल कनेक्टिविटी की सुविधा, दिल्ली के कई अंदरूनी और बाहरी दिल्ली में सुविधा न होने की वजह से आबादी के एक बड़े तबके को रोजाना इसी जद्दोजहद के सफर से गुजरना पड़ता है। 

आबादी और अंतिम छोर तक पहुंचने के लिए वाहनों की कम संख्या और अलग अलग क्षेत्रों की जरूरत के मुताबिक परिचालन से हालात में सुधार की उम्मीद विशेषज्ञ जताते हैं। इसे दुरस्त करने के लिए जरूरी है कि सभी क्षेत्रों की जरूरतों का पता करने के बाद रूट तय किए जाएं। नियमित अंतराल पर अगर कम खर्च में आखिरी छोर तक पहुंचने की सुविधा यात्रियों को मिले तो सार्वजनिक परिवहन को अपनाने की राह की मुश्किलें काफी कम हो सकती हैं। 

जानकारों के मुताबिक इसके लिए जरूरी है कि क्षेत्र विशेष की सड़कें और वाहनों की जरूरतों के मुताबिक रूट तय कर, नियत समय पर इनका परिचालन किया जाए। वाहनों के जाम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए रूट तय किए जाने चाहिए। इससे गंतव्य तक पहुंचने में न तो अधिक खर्च होगा और न ही किसी और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। सुविधाओं में सुधार और सभी मार्गों तक पहुंच बढ़ने से घर से दफ्तर, स्कूल, कॉलेज या किसी भी जरूरी काम के लिए सफर में सहूलियतें बढ़ सकती हैं। ऐसा न होने से यात्रियों को कैब या ऑटो में सफर के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा है। 

प्रतिस्पर्धा नहीं, जरूरी है पूरक बनने की 
विशेषज्ञ अनन्या के मुताबिक लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए प्रतिस्पर्धा के बजाय सभी परिवहन साधनों को एक दूसरे के पूरक के तौर पर प्रयोग में लाने की जरूरत है। लास्ट माइल कनेक्टिविटी को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए जरूरी है कि मेट्रो और बसों के नेटवर्क के साथ आखिरी छोर तक की कनेक्टिविटी हो। करोल बाग, लाजपत नगर, कमला नगर, इंडस्ट्रियल कनेक्शन की जरूरतें अलग अलग हैं। इनका अध्ययन कर जरूरत के मुताबिक लागू करने से सहूलियतें बढ़ सकती हैं। दफ्तरों तक आने जाने के लिए मिनी या फीडर बसों से सुविधाएं बढ़ सकती हैं। गलियों तक पहुंचने के लिए तयशुदा रूट पर शेयर पर चलने वाले ऑटो, ई रिक्शा की सुविधा जरूरी है। इससे अंदरूनी हिस्से तक बेहतर कनेक्टिविटी होगी। स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, मंडी, औद्योगिक क्षेत्र सहित तमाम जगहों का अध्ययन करने के बाद लास्ट माइल कनेक्टिविटी से दिल्ली वासियों को काफी राहत मिल सकती है।

एक लाख से अधिक ई रिक्शा
सरकार की ओर से ई रिक्शा को प्रोत्साहित करने का असर दिखने लगा है। अब तक एक लाख से अधिक ई रिक्शा पंजीकृत हो चुके हैं जबकि ऑटो की संख्या भी इससे अधिक है। ई ऑटो को भी सरकार की ओर से लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण के साथ साथ इससे लोगों को पर्यावरण के लिहाज से स्वच्छ ईंधन के वाहनों से सफर का मौका भी जल्द मिलने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इससे कई सुदूर और दिल्ली के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंचना पहले से सुगम हो जाएगा। 

फीडर बसों से भी नहीं मिल रही हैं यात्रियों को राहत
दिल्ली मेट्रो ने भी यात्रियों की सुविधा के लिए फीडर बसों की शुरुआत की। लेकिन मुख्य मार्गों से गुजरने की वजह से अभी भी यात्रियों की परेशानियां कम नहीं हुई हैं। लॉकडाउन के दौरान बंद हुई मिनी और फीडर बसें सड़कों पर तो उतर आईं, मगर कमी का खामियाजा रोजाना यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। दिल्ली मेट्रो ने कुछ महीने पहले ई बसों का परिचालन भी शुरू किया था, मगर इससे भी यात्रियों की सहूलियतें जरूरत के मुताबिक नहीं मिल रही हैं।

भजनुपरा से करोल बाग जाने के लिए शास्त्री पार्क मेट्रो पहुंचने में 15 मिनट का वक्त लगता है जबकि ई रिक्शा पर 20 रुपये खर्च करना होता है।  इसके बाद भी रास्ते में जाम से जूझना पड़ता है। ई रिक्शा के लिए मार्गों पर प्रतिबंध होने के कारण भी कई बार यात्रियों को अधिक वक्त लगने के बाद भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अंतिम छोर तक पहुंचने में अभी भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कॉलोनियों की गलियों में रहने वालों को खास तौर पर अधिक दिक्कत होती है, क्योंकि उन्हें मेट्रो या बस स्टॉप तक पहुंचने में काफी परेशानी होती है। 
विपिन, स्थानीय निवासी, भजनपुरा

रोहिणी से रिठाला मेट्रो स्टेशन तक पहुंचने के लिए रोजाना ऑटो में एक तरफ का किराया 60 रुपये खर्च करना पड़ता है। बस स्टॉप या ऑटो के लिए भी करीब 500 मीटर पैदल चलना पड़ता है जबकि मेट्रो से उतरने के बाद भी कनॉट प्लेस में करीब एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। अगर मेट्रो और बस स्टॉप तक के लिए हर वक्त छोटे वाहनों की सुविधा हो और कम खर्च करना पड़े तो राहत मिल सकती है। 
 अमित, सेक्टर-20, रोहिणी, सेक्टर-20 

सीलमपुर के ई रिक्शा चालक विक्रम को इस बात की चिंता सता रही है कि दिल्ली की 236 सड़कों पर ई-रिक्शा के संचालन पर पाबंदी है। इके तहत नई दिल्ली क्षेत्र में 77, दक्षिणी दिल्ली में 38 सड़कों सहित रिंग रोड, विकास मार्ग और शकरपुर चौक से मदर डेयरी रोड व दूसरी सड़कें भी शामिल हैं। सभी मेट्रो स्टेशन और बस स्टॉप के आसपास मुख्य सड़कें हैं। प्रतिबंधित सड़कों से बचने के लिए दूसरे मार्गों को अपनाना पड़ता है। इससे कई बार यात्रियों को अधिक वक्त लगने की शिकायत रहती है। इसमें राहत मिलने से अंतिम छोर तक पहुंचना यात्रियों के लिए बेहद आसान हो जाएगा।
विक्रम, ई रिक्शा चालक, सीलमपुर

यात्रियों के आवागमन में सहूलियतें तो पहले से काफी बढ़ी हैं। मगर, आबादी बढ़ने के साथ गंतव्य तक पहुंचने की राह में मुश्किलें पूरी तरह कम नहीं हुई। इसके लिए संगठित तरीके से ऑटो और ई रिक्शा का परिचालन होना चाहिए। तयशुदा वक्त और नियत स्थान पर अगर निश्चित संख्या में वाहन उपलब्ध हो तो परेशानी हद तक कम हो सकती हैं। यात्रियों के लिहाज से कुछ और बदलाव किए जा सकते हैं ताकि कैब की तर्ज पर उन्हें ई रिक्शा और ऑटो की सुविधा भी मिल सके।
-संजय चावल, प्रधान, तिपहिया ऑटो चालक संघ, यूनियन के प्रधान 

विस्तार

बढ़ती आबादी के साथ-साथ परिवहन की सुविधाएं तो बढ़ीं फिर भी मेट्रो स्टेशन, बस स्टॉप या दफ्तर से दिल्ली की कॉलोनियों या सेक्टर तक पहुंचने की राह आसान नहीं हुईं। शाम हो या सुबह (भोर), अंतिम छोर तक पहुंचने के लिए आबादी के लिहाज से परिवहन विकल्पों की कमी से रोजाना लाखों यात्रियों को मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। लास्ट माइल कनेक्टिविटी की सुविधा, दिल्ली के कई अंदरूनी और बाहरी दिल्ली में सुविधा न होने की वजह से आबादी के एक बड़े तबके को रोजाना इसी जद्दोजहद के सफर से गुजरना पड़ता है। 

आबादी और अंतिम छोर तक पहुंचने के लिए वाहनों की कम संख्या और अलग अलग क्षेत्रों की जरूरत के मुताबिक परिचालन से हालात में सुधार की उम्मीद विशेषज्ञ जताते हैं। इसे दुरस्त करने के लिए जरूरी है कि सभी क्षेत्रों की जरूरतों का पता करने के बाद रूट तय किए जाएं। नियमित अंतराल पर अगर कम खर्च में आखिरी छोर तक पहुंचने की सुविधा यात्रियों को मिले तो सार्वजनिक परिवहन को अपनाने की राह की मुश्किलें काफी कम हो सकती हैं। 

जानकारों के मुताबिक इसके लिए जरूरी है कि क्षेत्र विशेष की सड़कें और वाहनों की जरूरतों के मुताबिक रूट तय कर, नियत समय पर इनका परिचालन किया जाए। वाहनों के जाम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए रूट तय किए जाने चाहिए। इससे गंतव्य तक पहुंचने में न तो अधिक खर्च होगा और न ही किसी और परेशानी का सामना करना पड़ेगा। सुविधाओं में सुधार और सभी मार्गों तक पहुंच बढ़ने से घर से दफ्तर, स्कूल, कॉलेज या किसी भी जरूरी काम के लिए सफर में सहूलियतें बढ़ सकती हैं। ऐसा न होने से यात्रियों को कैब या ऑटो में सफर के लिए अधिक खर्च करना पड़ रहा है। 

प्रतिस्पर्धा नहीं, जरूरी है पूरक बनने की 

विशेषज्ञ अनन्या के मुताबिक लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए प्रतिस्पर्धा के बजाय सभी परिवहन साधनों को एक दूसरे के पूरक के तौर पर प्रयोग में लाने की जरूरत है। लास्ट माइल कनेक्टिविटी को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए जरूरी है कि मेट्रो और बसों के नेटवर्क के साथ आखिरी छोर तक की कनेक्टिविटी हो। करोल बाग, लाजपत नगर, कमला नगर, इंडस्ट्रियल कनेक्शन की जरूरतें अलग अलग हैं। इनका अध्ययन कर जरूरत के मुताबिक लागू करने से सहूलियतें बढ़ सकती हैं। दफ्तरों तक आने जाने के लिए मिनी या फीडर बसों से सुविधाएं बढ़ सकती हैं। गलियों तक पहुंचने के लिए तयशुदा रूट पर शेयर पर चलने वाले ऑटो, ई रिक्शा की सुविधा जरूरी है। इससे अंदरूनी हिस्से तक बेहतर कनेक्टिविटी होगी। स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, मंडी, औद्योगिक क्षेत्र सहित तमाम जगहों का अध्ययन करने के बाद लास्ट माइल कनेक्टिविटी से दिल्ली वासियों को काफी राहत मिल सकती है।

एक लाख से अधिक ई रिक्शा

सरकार की ओर से ई रिक्शा को प्रोत्साहित करने का असर दिखने लगा है। अब तक एक लाख से अधिक ई रिक्शा पंजीकृत हो चुके हैं जबकि ऑटो की संख्या भी इससे अधिक है। ई ऑटो को भी सरकार की ओर से लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण के साथ साथ इससे लोगों को पर्यावरण के लिहाज से स्वच्छ ईंधन के वाहनों से सफर का मौका भी जल्द मिलने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इससे कई सुदूर और दिल्ली के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंचना पहले से सुगम हो जाएगा। 

फीडर बसों से भी नहीं मिल रही हैं यात्रियों को राहत

दिल्ली मेट्रो ने भी यात्रियों की सुविधा के लिए फीडर बसों की शुरुआत की। लेकिन मुख्य मार्गों से गुजरने की वजह से अभी भी यात्रियों की परेशानियां कम नहीं हुई हैं। लॉकडाउन के दौरान बंद हुई मिनी और फीडर बसें सड़कों पर तो उतर आईं, मगर कमी का खामियाजा रोजाना यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। दिल्ली मेट्रो ने कुछ महीने पहले ई बसों का परिचालन भी शुरू किया था, मगर इससे भी यात्रियों की सहूलियतें जरूरत के मुताबिक नहीं मिल रही हैं।

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