T series Breaking News : "टी-सीरीज़ की ज़मीन पर विकास या दखल? नमोली प्रकरण में बड़ा खुलासा, GNIDA पर गंभीर आरोप, जनहित में 'कानूनी मोर्चा' खोलने को तैयार हुआ देश का सबसे बड़ा म्यूज़िक ग्रुप"

ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे ब्यूरो।
नमोली गांव में स्थित एक बहुप्रतीक्षित भूमि को लेकर इन दिनों विवाद गरमा गया है। इस विवाद का केंद्र बना है टी-सीरीज़ ग्रुप और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी (GNIDA) के बीच चल रहा भूमि अधिकार और अधिग्रहण का मुद्दा, जिसमें टी-सीरीज़ ने स्पष्ट और सख्त रुख अपनाया है। भ्रामक मीडिया रिपोर्ट्स और अथॉरिटी के बयानों के जवाब में टी-सीरीज़ ने एक विस्तृत प्रेस रिलीज जारी की है, जिसमें उन्होंने पूरी स्थिति का सिलसिलेवार खुलासा किया है।
टी-सीरीज़ का दावा – 1987 से है भूमि पर स्वामित्व, GNIDA का गठन बाद में हुआ
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, नमोली गांव की जिस ज़मीन पर विवाद है, वह सुरजपुर-कासना रोड और शारदा व एक्सपो मार्ट रोड के बीच स्थित है। यह भूखंड वर्ष 1987 से ही टी-सीरीज़ के स्वामित्व और कब्जे में है। टी-सीरीज़ के अनुसार यह भूमि पूरी तरह फ्रीहोल्ड, गैर-कृषि और औद्योगिक उपयोग की श्रेणी में आती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सब कुछ GNIDA के गठन से पहले से ही स्थापित है, जिससे टी-सीरीज़ का दावा और अधिक मजबूत हो जाता है।
बिना अनुमति बनाई गई सड़क, मुआवज़े का अब तक नहीं मिला कोई संकेत
टी-सीरीज़ ने अपने बयान में आरोप लगाया है कि कुछ वर्ष पूर्व GNIDA ने LG चौक से शारदा यूनिवर्सिटी राउंडअबाउट तक सड़क निर्माण शुरू किया, वो भी उनकी पूर्व सहमति के बिना। इस निर्माण के खिलाफ विरोध करने पर उन्हें भ्रमित किया गया और वादा किया गया कि उन्हें समतुल्य भूमि दी जाएगी, लेकिन समय बीतने के साथ GNIDA ने न केवल वादे से मुकरने का प्रयास किया, बल्कि ज़मीन हड़पने की कोशिश भी की।

इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी मिली राहत, GNIDA की धारा 4 और 6 की कार्यवाही रद्द
टी-सीरीज़ ने यह भी बताया कि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर GNIDA द्वारा की जा रही भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद्द करवा लिया है। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि प्राधिकरण की कार्यवाही कानूनी रूप से कमजोर थी।
सड़क पर कब्ज़ा, जमीन की ऊंची कीमत पर बिक्री – टी-सीरीज़ ने लगाया व्यावसायिक लाभ का आरोप
टी-सीरीज़ का आरोप है कि GNIDA ने अधूरी सड़क के सहारे आसपास की जमीनों को ऊंचे दामों पर बेचकर व्यावसायिक लाभ कमाया, जबकि सड़क उनके भूखंड से होकर गुजरती है। आज तक उन्हें कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया, न ही भूमि वापसी या विकल्प की कोई औपचारिक पहल की गई।
हर महीने संपर्क के बावजूद मिल रहा है सिर्फ दबाव और ज़बरदस्ती
टी-सीरीज़ का कहना है कि वे लगातार GNIDA से संवाद में रहे हैं, लेकिन सहयोग की बजाय प्राधिकरण द्वारा दबाव बनाने की रणनीति अपनाई जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अब वे किसी मौखिक वादे पर विश्वास नहीं करेंगे और हर बात लिखित रूप में चाहते हैं।

जनसुनवाई में रखी तीन ठोस शर्तें – अधिग्रहण तभी मान्य जब…
28 जनवरी 2025 को आयोजित जनसुनवाई में टी-सीरीज़ ने तीन प्रमुख शर्तें रखीं:
- चयनात्मक अधिग्रहण – केवल 4.0848 हेक्टेयर भूमि जो सड़क निर्माण में आ रही है, वही अधिग्रहित की जाए। 20 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण का प्रयास अनुचित है।
- वैकल्पिक भूमि मुआवजा – सड़क के बदले में समान आकार की भूमि उसी क्षेत्र में उपलब्ध कराई जाए।
- विस्तार योजना की मंजूरी – शेष भूमि के लिए बनाए गए मास्टर प्लान को GNIDA द्वारा स्वीकृति दी जाए, जैसा कि 27 जनवरी 2023 को हुए MoU में तय किया गया था।
“हम विकास विरोधी नहीं, लेकिन शर्तों पर ही सहयोग संभव”
टी-सीरीज़ ग्रुप ने दोहराया कि वे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन उनका सहयोग तभी संभव होगा जब GNIDA उपरोक्त शर्तों को लिखित रूप में स्वीकार करे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि बिना वैकल्पिक भूमि उपलब्ध कराए सड़क निर्माण की कोशिश की गई, तो वे कानूनी रास्ता अपनाकर सड़क रुकवाने के लिए बाध्य होंगे।
भ्रामक सूचनाओं से जनता में भ्रम, पारदर्शिता की अपील
प्रेस विज्ञप्ति में टी-सीरीज़ ने GNIDA से यह भी अपील की है कि वे मीडिया में भ्रामक और असत्य सूचनाएं न फैलाएं, जिससे जनता में भ्रम और अनावश्यक तनाव पैदा होता है। उन्होंने पारदर्शिता और पारस्परिक सम्मान की बात को ज़ोरदार तरीके से रखा।
टी-सीरीज़ का बड़ा खुलासा – “40% भूमि सौंपने की कोई सहमति नहीं दी”
टी-सीरीज़ ने हालिया बयानों का खंडन करते हुए कहा है कि उन्होंने कभी भी 40% अविकसित भूमि सौंपने पर सहमति नहीं दी है। उन्होंने यह बात भूमि अधिग्रहण हेतु गठित विशेषज्ञ समिति के समक्ष औपचारिक रूप से दर्ज भी करवाई है।
“जनहित में न्यायपूर्ण समाधान की दिशा में खड़े हैं”
टी-सीरीज़ ने अंत में कहा कि वे सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक और सकारात्मक संवाद के लिए तैयार हैं, लेकिन समाधान केवल न्याय और कानून के दायरे में ही स्वीकार्य होगा।
निष्कर्ष
यह पूरा मामला एक बड़ी बहस का विषय बन चुका है – क्या विकास के नाम पर निजी हक छीने जा सकते हैं? क्या एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त ग्रुप के साथ भी मनमानी की जा सकती है? आने वाले समय में यह विवाद न केवल कानूनी बल्कि नीतिगत दृष्टिकोण से भी दिशा तय कर सकता है।
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