धीरज बेनीवाल, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Fri, 19 Nov 2021 06:21 AM IST
सार
लापता होते ही हो गई थी युवक की हत्या। परिजनों तक सूचना पहुंचाने में पुलिस को लग गए ढाई महीने।
बेशक दिल्ली पुलिस चाहे लाख पेशेवर और आधुनिक होने की बात कहे लेकिन गाहे-बगाहे कलई खुल ही जाती है। एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें दिल्ली पुलिस करीब ढाई माह तक मृत शख्स की तलाश करती रही जबकि लापता होते ही उसकी हत्या हो गई थी। हालांकि ये सूचना जिले के एक थाने से दूसरे थाना इलाके में रहने वाले परिजनों तक पहुंचाने में पुलिस को ढाई महीने लग गए। ये शख्स पश्चिम दिल्ली के नांगलोई थाना इलाके से गायब हुआ था और उसका शव सुल्तानपुरी थाना इलाके में मिला।
पेश मामले में जेजे कैंप नंबर दो नांगलोई निवासी युवक राकेश 22 अगस्त की शाम अचानक घर से चला गया। परिजनों ने करीब काफी इंतजार और तलाश करने के बाद नांगलोई थाने में 24 अगस्त को उसकी गुमशुदगी की इत्तला दी। इसकी रोजनामचा एंट्री कर जांच का जिम्मा हवलदार छोटे लाल को सौंपा जाता है।
संयोगवश थाना सुल्तानपुरी पुलिस को 23 अगस्त की सुबह जलेबी चौक सत्संग भवन के पार्क के बाहर एक शव पड़ा होने की सूचना मिलती है। पुलिस अपनी कार्यवाही कर शव का पोस्टमार्टम करवाती है। उसके बारे में आसपास लोगों से पता करती है लेकिन किसी से उस युवक के बारे में कुछ पता नहीं चलता। हालांकि पुलिस यह जानने की कोशिश शायद नहीं करती कि उसी जिले के दूसरे थाने से एक युवक लापता है।
पुलिस कुछ दिनों तक इंतजार करने के बाद शव का लावारिस के तौर पर हिंदू रीति से दस सितंबर 2021 को दाह संस्कार कर देती है। हालांकि इससे पहले पुलिस उसकी पहचान की कोशिश करती है लेकिन सब बेकार रहता है। उसके नाम और निवास की पहचान नहीं हो पाती।
वहीं दूसरी ओर राकेश का परिवार इस सारी कहानी से बेखबर उसके लौटने का इंतजार करता रहा। इस बीच नांगलोई थाना पुलिस की तलाश और कार्यवाही अपने ही अंदाज में चलती रही। परिजन राकेश की तलाश में पुलिस की कार्यवाही जानने के लिए अधिवक्ता पूज्य कुमार सिंह के जरिये अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं।
तीस हजारी अदालत के समक्ष पेश होकर नांगलोई थाने के हवलदार छोटे लाल 22 अक्तूबर यानी राकेश के गायब होने के बाद करीब दो माह बताते हैं कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद कोई सुराग नहीं मिला है। वहीं हकीकत ये थी कि राकेश की दो माह पहले ही हत्या हो चुकी थी।
इसके दो सप्ताह बाद सुल्तानपुरी थाना पुलिस 12 नवंबर को राकेश के परिजनों को सूचना देती है कि 23 अगस्त को सत्संग भवन पार्क के पास युवक का शव मिला था। इस बाबत 11 नवंबर को हत्या की धारा में एफआईआर दर्ज की गई है। परिजनों को पुलिसवाले फोटो दिखाते हैं जिससे वे लोग उसकी पहचान राकेश के तौर पर करते हैं।
अब परिजन इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात कह रहे हैं। अधिवक्ता पूज्य कुमार सिंह ने बताया कि ये लापरवाही है क्योंकि किसी के गुमशुदा होने पर और अज्ञात शव मिलने पर पुलिस विभाग में संदेश भेजा जाता है। यहां मामला एक जिले के दो थानों का है जिनमें महज एक किलोमीटर की भी दूरी नहीं है लेकिन पुलिस को ढाई माह तक ये पता नहीं चल पाता कि जिसकी हत्या हुई वो कौन था जबकि पड़ोस के थाने में गुमशुदगी दर्ज थी।
उन्होंने कहा कि पुलिस की लापरवाही के कारण राकेश के परिजन उसके अंतिम संस्कार से भी वंचित रह गए। उसका अंतिम संस्कार लावारिस के तौर पर किया गया जबकि उसका भरा-पूरा परिवार है।
विस्तार
बेशक दिल्ली पुलिस चाहे लाख पेशेवर और आधुनिक होने की बात कहे लेकिन गाहे-बगाहे कलई खुल ही जाती है। एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें दिल्ली पुलिस करीब ढाई माह तक मृत शख्स की तलाश करती रही जबकि लापता होते ही उसकी हत्या हो गई थी। हालांकि ये सूचना जिले के एक थाने से दूसरे थाना इलाके में रहने वाले परिजनों तक पहुंचाने में पुलिस को ढाई महीने लग गए। ये शख्स पश्चिम दिल्ली के नांगलोई थाना इलाके से गायब हुआ था और उसका शव सुल्तानपुरी थाना इलाके में मिला।
पेश मामले में जेजे कैंप नंबर दो नांगलोई निवासी युवक राकेश 22 अगस्त की शाम अचानक घर से चला गया। परिजनों ने करीब काफी इंतजार और तलाश करने के बाद नांगलोई थाने में 24 अगस्त को उसकी गुमशुदगी की इत्तला दी। इसकी रोजनामचा एंट्री कर जांच का जिम्मा हवलदार छोटे लाल को सौंपा जाता है।
संयोगवश थाना सुल्तानपुरी पुलिस को 23 अगस्त की सुबह जलेबी चौक सत्संग भवन के पार्क के बाहर एक शव पड़ा होने की सूचना मिलती है। पुलिस अपनी कार्यवाही कर शव का पोस्टमार्टम करवाती है। उसके बारे में आसपास लोगों से पता करती है लेकिन किसी से उस युवक के बारे में कुछ पता नहीं चलता। हालांकि पुलिस यह जानने की कोशिश शायद नहीं करती कि उसी जिले के दूसरे थाने से एक युवक लापता है।
पुलिस कुछ दिनों तक इंतजार करने के बाद शव का लावारिस के तौर पर हिंदू रीति से दस सितंबर 2021 को दाह संस्कार कर देती है। हालांकि इससे पहले पुलिस उसकी पहचान की कोशिश करती है लेकिन सब बेकार रहता है। उसके नाम और निवास की पहचान नहीं हो पाती।
वहीं दूसरी ओर राकेश का परिवार इस सारी कहानी से बेखबर उसके लौटने का इंतजार करता रहा। इस बीच नांगलोई थाना पुलिस की तलाश और कार्यवाही अपने ही अंदाज में चलती रही। परिजन राकेश की तलाश में पुलिस की कार्यवाही जानने के लिए अधिवक्ता पूज्य कुमार सिंह के जरिये अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं।
तीस हजारी अदालत के समक्ष पेश होकर नांगलोई थाने के हवलदार छोटे लाल 22 अक्तूबर यानी राकेश के गायब होने के बाद करीब दो माह बताते हैं कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद कोई सुराग नहीं मिला है। वहीं हकीकत ये थी कि राकेश की दो माह पहले ही हत्या हो चुकी थी।
इसके दो सप्ताह बाद सुल्तानपुरी थाना पुलिस 12 नवंबर को राकेश के परिजनों को सूचना देती है कि 23 अगस्त को सत्संग भवन पार्क के पास युवक का शव मिला था। इस बाबत 11 नवंबर को हत्या की धारा में एफआईआर दर्ज की गई है। परिजनों को पुलिसवाले फोटो दिखाते हैं जिससे वे लोग उसकी पहचान राकेश के तौर पर करते हैं।
अब परिजन इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात कह रहे हैं। अधिवक्ता पूज्य कुमार सिंह ने बताया कि ये लापरवाही है क्योंकि किसी के गुमशुदा होने पर और अज्ञात शव मिलने पर पुलिस विभाग में संदेश भेजा जाता है। यहां मामला एक जिले के दो थानों का है जिनमें महज एक किलोमीटर की भी दूरी नहीं है लेकिन पुलिस को ढाई माह तक ये पता नहीं चल पाता कि जिसकी हत्या हुई वो कौन था जबकि पड़ोस के थाने में गुमशुदगी दर्ज थी।
उन्होंने कहा कि पुलिस की लापरवाही के कारण राकेश के परिजन उसके अंतिम संस्कार से भी वंचित रह गए। उसका अंतिम संस्कार लावारिस के तौर पर किया गया जबकि उसका भरा-पूरा परिवार है।
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