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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक नाबालिग आरोपी को रिहा करने का निर्देश दिया। ये नाबालिग किशोर न्याय बोर्ड (जेजे बोर्ड) द्वारा प्रदान की गई जमानत की शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण नहीं छूट पाया। इतना ही नहीं, बोर्ड के जमानती आदेश के सात दिनों बाद भी शर्तों में संशोधन के बजाय दोबारा अवलोकन गृह में भेज दिया गया था।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रही है। याचिका में कहा गया है कि 16 साल की उम्र के इस बच्चे को इस साल अक्तूबर में हिरासत में लिया गया था और वह सात सप्ताह से हिरासत में है।
डीसीपीसीआर के अनुसार जेजे बोर्ड द्वारा किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 के तहत 29 नवंबर, 2021 के आदेश के तहत बच्चे को जमानत दी गई। हालांकि जमानत की शर्तों को पूरा करने के अभाव में बच्चे को आज तक रिहा नहीं किया गया।
डीसीपीसीआर की ओर से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने तर्क रखा कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12(4) में कहा गया है कि जब कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा सात दिनों के भीतर जमानत आदेश की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ होता है, तो उसे जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए बोर्ड के समक्ष पेश करने का प्रावधान है।
याचिका के अनुसार पांच दिसंबर को जमानत आदेश के सात दिनों के भीतर जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए बच्चे को जेजे बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया था। उन्होंने इसके बजाय 13 दिसंबर को 8 दिनों के अंतराल के बाद बोर्ड के सामने पेश किया। तब भी जमानत की शर्तों में बदलाव किए बिना उसे फिर से ऑब्जर्वेशन होम भेज दिया गया।
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक नाबालिग आरोपी को रिहा करने का निर्देश दिया। ये नाबालिग किशोर न्याय बोर्ड (जेजे बोर्ड) द्वारा प्रदान की गई जमानत की शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण नहीं छूट पाया। इतना ही नहीं, बोर्ड के जमानती आदेश के सात दिनों बाद भी शर्तों में संशोधन के बजाय दोबारा अवलोकन गृह में भेज दिया गया था।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रही है। याचिका में कहा गया है कि 16 साल की उम्र के इस बच्चे को इस साल अक्तूबर में हिरासत में लिया गया था और वह सात सप्ताह से हिरासत में है।
डीसीपीसीआर के अनुसार जेजे बोर्ड द्वारा किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 12 के तहत 29 नवंबर, 2021 के आदेश के तहत बच्चे को जमानत दी गई। हालांकि जमानत की शर्तों को पूरा करने के अभाव में बच्चे को आज तक रिहा नहीं किया गया।
डीसीपीसीआर की ओर से पेश अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने तर्क रखा कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12(4) में कहा गया है कि जब कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा सात दिनों के भीतर जमानत आदेश की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ होता है, तो उसे जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए बोर्ड के समक्ष पेश करने का प्रावधान है।
याचिका के अनुसार पांच दिसंबर को जमानत आदेश के सात दिनों के भीतर जमानत की शर्तों में संशोधन के लिए बच्चे को जेजे बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया था। उन्होंने इसके बजाय 13 दिसंबर को 8 दिनों के अंतराल के बाद बोर्ड के सामने पेश किया। तब भी जमानत की शर्तों में बदलाव किए बिना उसे फिर से ऑब्जर्वेशन होम भेज दिया गया।