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Sant Hood Convent Schools :“छात्रों ने बांटी मुस्कानें, सम्मान और मिठास, सेंट हुड कॉन्वेंट स्कूल में श्रम दिवस पर दीदी-भैयाओं को किया गया दिल से सलाम”, प्रधानाचार्या डॉ. आशा शर्मा ने कहा 'श्रमिक हमारे स्कूल की रीढ़ हैं'



विद्या नगर, दादरी | Raftar Today
श्रमिकों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान की भावना को समर्पित 1 मई – अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के अवसर पर सेंट हुड कॉन्वेंट स्कूल, विद्या नगर में एक ऐसा कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसने दिल छू लिया। इस खास दिन को विद्यालय ने सिर्फ एक औपचारिकता के रूप में नहीं, बल्कि मानवता, सहयोग और स्नेह के उत्सव के रूप में मनाया।


छात्रों ने दिखाया असली ‘श्रम-सम्मान’, दीदी-भैयाओं को सौंपे उपहार और प्रेम

विद्यालय में कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों ने अपने शब्दों, भावनाओं और रचनात्मकता से उन लोगों के प्रति कृतज्ञता जताई, जो रोज़ उनके स्कूल जीवन को सहज, सुरक्षित और साफ-सुथरा बनाए रखते हैं—दीदी-भैया, ड्राइवर अंकल, सफाई कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी और अन्य सहायक कर्मचारी। बच्चों ने अपने हाथों से बनाए शुभकामना कार्ड, रंगीन पोस्टर, और स्वादिष्ट मिठाइयाँ देकर यह जताया कि उनका योगदान अनमोल है।


खास रहा भोजन और मिठाइयों का ‘प्यार भरा टिफिन’

इस कार्यक्रम की सबसे विशेष बात यह रही कि छात्रों ने अपने घर से अपने हाथों से बनाए हुए पकवान और मिठाइयाँ लाकर दीदी-भैयाओं को खुद परोसीं। यह केवल स्वाद नहीं था, बल्कि उनके हाथों में सम्मान और स्नेह का घोल था, जिसे देखकर कई दीदी-भैयाओं की आंखें नम हो गईं।


प्रधानाचार्या डॉ. आशा शर्मा ने कहा – ‘श्रमिक हमारे स्कूल की रीढ़ हैं’

विद्यालय की प्रधानाचार्या डॉ. आशा शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा, “श्रमिक किसी भी संस्थान की बुनियाद होते हैं। इनका परिश्रम हर दिन हमारे बच्चों के सुरक्षित और अनुशासित जीवन का आधार बनता है। आज का दिन हमें यह सिखाता है कि सच्चा सम्मान वही है, जो दिल से दिया जाए।” उन्होंने सभी सहायक कर्मचारियों को व्यक्तिगत रूप से सम्मान पत्र और उपहार भेंट किए।


कविता, नृत्य और गायन से सजी रंगारंग प्रस्तुतियाँ

कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने कविता पाठ, भावनात्मक भाषण, नृत्य और सांस्कृतिक नाट्य प्रस्तुति के माध्यम से यह दर्शाया कि समाज में श्रमिकों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। बच्चों के शब्दों में सम्मान, करुणा और प्रेरणा की झलक स्पष्ट थी।


श्रमिकों ने कहा—’आज दिल से महसूस हुआ कि हमारे काम को सराहा जाता है’

विद्यालय के सहायक कर्मचारियों ने बच्चों के इस प्यार भरे आयोजन को लेकर हर्ष और भावुकता से कहा कि आज उन्हें यह अहसास हुआ कि उनकी मेहनत और समर्पण को देखा और सराहा जा रहा है। किसी ने कहा—“बच्चों ने दिल जीत लिया।” किसी ने कहा—“आज पहली बार हम स्कूल में मुख्य अतिथि की तरह महसूस कर रहे हैं।”


प्रतियोगिताओं में दिखा बच्चों का श्रमिकों के प्रति समर्पण

इस अवसर पर स्लोगन लेखन, निबंध लेखन, और पोस्टर मेकिंग जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया, जिसमें बच्चों ने श्रमिकों के योगदान पर प्रकाश डाला। पोस्टर पर लिखे नारे जैसे—
“जो बनाते हैं हमारी राहें आसान, उन्हें नमन”,
“श्रम ही है सम्मान का वास्तविक रूप”,
“हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे होता है किसी श्रमिक का परिश्रम”—ने उपस्थित लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।


विद्यालय का संदेश – ‘संवेदनशील शिक्षा ही सच्ची शिक्षा’

सेंट हुड कॉन्वेंट स्कूल हमेशा से छात्रों को सिर्फ पाठ्यक्रम नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की शिक्षा देने के लिए जाना जाता है। इस आयोजन से बच्चों ने यह सीख ली कि सम्मान देना, दूसरों के परिश्रम को पहचानना और कृतज्ञ रहना एक आदर्श नागरिक की पहचान होती है।


भविष्य की योजना – ‘एक दिन श्रमिकों के साथ’ प्रोग्राम की घोषणा

प्रधानाचार्या डॉ. शर्मा ने इस अवसर पर घोषणा की कि जल्द ही स्कूल में ‘एक दिन श्रमिकों के साथ’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, जिसमें विद्यार्थी श्रमिकों की एक दिन की जिम्मेदारियाँ निभाएंगे ताकि वे स्वयं अनुभव कर सकें कि इन कार्यों में कितना परिश्रम और समर्पण निहित होता है।


बच्चों के शब्दों में श्रमिकों के लिए आदर

छात्रा प्रांजल ने कहा, “हमेशा हमें क्लास साफ मिलती है, पानी मिलता है, समय पर बस आती है, लेकिन कभी सोचा नहीं कि इसके पीछे किनका श्रम होता है। आज समझ आया कि हर सुविधा के पीछे कोई मेहनती हाथ होते हैं।”
वहीं छात्र राघव ने कहा, “आज जब मैंने दीदी को अपने हाथों से खाना परोसा, तो उनका मुस्कुराता चेहरा मेरी सबसे बड़ी जीत बन गया।”


समापन पर राष्ट्रगान और सामूहिक धन्यवाद ज्ञापन

कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ और इसके बाद छात्रों और शिक्षकों ने सभी श्रमिकों को सामूहिक रूप से धन्यवाद ज्ञापित किया। बच्चों ने सभी दीदी-भैयाओं को ताली बजाकर सम्मानित किया और विद्यालय में यह दिन एक अविस्मरणीय स्मृति बन गया।


यह केवल कार्यक्रम नहीं, संस्कार की शिक्षा थी

यह आयोजन एक उदाहरण बन गया कि अगर सही दिशा और सोच हो, तो स्कूल केवल शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि संवेदनशील नागरिकों की पाठशाला बन सकता है। यह कार्यक्रम न सिर्फ बच्चों के लिए सीख था, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा था कि मानवता और श्रम का सम्मान सर्वोच्च है


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