नई दिल्लीएक घंटा पहले
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दिल्ली में इस वर्ष अभी तक 1006 डेंगू के केस दर्ज किए जा चुके हैं।
दिल्ली में डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है। दिल्ली नगर निगम की रिपोर्ट की मानें तो केवल अक्टूबर महीने में ही 66 फीसदी डेंगू के मामले आ चुके है। यानि 25 अक्टूबर तक दिल्ली में इस वर्ष अभी तक 1006 डेंगू के केस दर्ज किए जा चुके है। हिंदूराव अस्पताल के डॉ. विनोद आनंद का कहना है कि अगर आप डेंगू से बचना चाहते हैं तो खासकर दोपहर के समय सतर्क रहने की जरूरत है। डेंगू फैलाने वाला मच्छर दोपहर के समय ही सबसे ज्यादा एक्टिव होता है।
यह केवल दिन के समय में ही काटता है। बदलते हुए मौसम के साथ फ्लू जैसा कोई लक्षण दिखाई दे और आप कंफ्यूज हो जाएं कि आपको डेंगू हुआ है या सामान्य वायरल तो आपको डेंगू का लक्षण जरूर समझ लेना चाहिए। आमतौर पर देखा गया है कि डेंगू से पीड़ित लोगों को तेज बुखार आता है, आंखों के पीछे बहुत दर्द होता है, हड्डी में इतनी तेज दर्द होती है कि लगता है हड्डी टूट गई है। तीन-चार दिनों बाद शरीर में लाल चकत्ते होने लगते हैं। इन चकत्तों में खुजली भी होती है और पानी भी निकलता है। यह लक्षण दिखाई दे तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
डॉक्टर की सलाह: डेंगू होने पर ज्यादा लिक्विड लेना चाहिए
डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि डेंगू एक वायरल बीमारी है और यह 7 से 14 दिनों में ठीक हो जाती है। शुरू के कुछ दिनों में बहुत तेज बुखार, बदन दर्द और हड्डी टूटने का एहसास होगा। बुखार के लिए 650 मिलीग्राम का पेरासिटामोल ले सकते हैं। इसके साथ शरीर में दर्द हो रहा हो तो इसके लिये कोई भी दर्द निवारक दवाई नहीं देनी चाहिए। इससे प्लेटलेट्स पर काफी बुरा असर पड़ता है। तीन-चार दिनों बाद शरीर में डिहाइड्रेशन की समस्या होने लगती है। इस समस्या को दूर करने के लिए मरीज को ज्यादा लिक्विड लेने की सलाह दी जाती है।
गंभीर अवस्था में डेंगू में सबसे ज्यादा असर प्लेटलेट्स पर पड़ता है
गंभीर अवस्था में डेंगू में सबसे ज्यादा असर प्लेटलेट्स पर पड़ता है। यह अचानक से नीचे गिरने लगता है। 20 हजार से नीचे आने पर यह मरीज के लिए खतरा हो जाता है, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी में इलाज होने पर मरीज ठीक हो जाता है। प्लेटलेट्स अगर कम हो जाए तो उसको तत्काल बढ़ाने के लिए कोई दवाई नहीं होती है। अगर मरीज की 20 हजार से नीचे प्लेटलेट की संख्या पहुंच जाती है तो उसने ब्लीडिंग की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी परिस्थिति में मरीज को बाहर से प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है।