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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक मामलों का फैसला तथ्यों के सही मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि मुद्दे आम तौर पर बेडरूम और घर तक ही सीमित होते हैं। अदालत ने कहा ज्यादातर मामलों में एक पक्ष द्वारा क्रूरता की जाती है।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में सबूतों की जांच करते समय यदि विरोधाभास मामूली हैं तो अपीलीय अदालतों को इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए। पीठ ने उक्त टिप्पणी पत्नी को तलाक मंजूर करने संबंधी फैमिली कोर्ट के निर्णय के खिलाफ पति की याचिका खारिज करते हुए की।
पीठ ने कहा कि कई बार इन मामलों में कोई स्वतंत्र, निष्पक्ष गवाह नहीं होता और इसलिए तथ्यों और परिस्थितियों से उभरने वाली समग्र तस्वीर और दस्तावेजी या अन्य सबूतों पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैवाहिक मुद्दों के मामलों में साक्ष्य का मूल्यांकन करते समय संभावनाओं की प्रधानता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए।
लगातार मारपीट-प्रताड़ना का था आरोप
निचली अदालत ने पाया था कि पति ने पत्नी से लगातार मारपीट और प्रताड़ित किया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा यह क्रूरता है और तलाक का आधार है। शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ समाधान की संभावना का पता लगाने के लिए पक्षों के साथ बातचीत करने के बाद, यह निष्कर्ष निकला कि यह संभव नहीं था।
अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष कई तर्क रखे जिसमें यह भी शामिल है कि पारिवारिक न्यायालय ने कोई तर्क नहीं दिया था कि बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य या तीसरे पक्ष की पुष्टि के बिना, प्रतिवादी ने अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया था।
पीठ ने याची के तर्कों पर असहमति जताते हुए कहा कि विरोधाभास इतने गंभीर नहीं हैं कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष को बदल दें। न ही वे इतने गंभीर हैं कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता को निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित पैरामीटर नहीं हो सकता।
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक मामलों का फैसला तथ्यों के सही मूल्यांकन के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि मुद्दे आम तौर पर बेडरूम और घर तक ही सीमित होते हैं। अदालत ने कहा ज्यादातर मामलों में एक पक्ष द्वारा क्रूरता की जाती है।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में सबूतों की जांच करते समय यदि विरोधाभास मामूली हैं तो अपीलीय अदालतों को इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए। पीठ ने उक्त टिप्पणी पत्नी को तलाक मंजूर करने संबंधी फैमिली कोर्ट के निर्णय के खिलाफ पति की याचिका खारिज करते हुए की।
पीठ ने कहा कि कई बार इन मामलों में कोई स्वतंत्र, निष्पक्ष गवाह नहीं होता और इसलिए तथ्यों और परिस्थितियों से उभरने वाली समग्र तस्वीर और दस्तावेजी या अन्य सबूतों पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैवाहिक मुद्दों के मामलों में साक्ष्य का मूल्यांकन करते समय संभावनाओं की प्रधानता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए।
लगातार मारपीट-प्रताड़ना का था आरोप
निचली अदालत ने पाया था कि पति ने पत्नी से लगातार मारपीट और प्रताड़ित किया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा यह क्रूरता है और तलाक का आधार है। शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ समाधान की संभावना का पता लगाने के लिए पक्षों के साथ बातचीत करने के बाद, यह निष्कर्ष निकला कि यह संभव नहीं था।
अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष कई तर्क रखे जिसमें यह भी शामिल है कि पारिवारिक न्यायालय ने कोई तर्क नहीं दिया था कि बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य या तीसरे पक्ष की पुष्टि के बिना, प्रतिवादी ने अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया था।
पीठ ने याची के तर्कों पर असहमति जताते हुए कहा कि विरोधाभास इतने गंभीर नहीं हैं कि फैमिली कोर्ट के निष्कर्ष को बदल दें। न ही वे इतने गंभीर हैं कि वे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता को निर्धारित करने के लिए कोई निश्चित पैरामीटर नहीं हो सकता।