बृहस्पतिवार को जस्टिस विपिन सांघी व जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, जहां पश्चिमी देश बूस्टर खुराक की पैरवी कर रहे हैं, वहीं भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए कोई चिकित्सा साक्ष्य मौजूद नहीं हैं।
ऐसे में हमें विशेषज्ञों से ज्यादा जानने की जरूरत है। यह फैसला आर्थिक आधार पर नहीं होना चाहिए। माना कि बूस्टर डोज एक महंगा प्रस्ताव है लेकिन हम रूढ़िवादी रवैया अपनाते हुए दूसरी लहर जैसी स्थिति में भी नहीं जाना चाहते।
दिल्ली में महामारी के प्रसार के दौरान दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, यह एक बहुत गंभीर बात है। हम विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन यह कैसे हो सकता है कि पश्चिमी देश बूस्टर डोज को प्रोत्साहित कर रहे हैं और हम उन लोगों को भी अनुमति नहीं दे रहे हैं, जो इसे लगवाना चाहते हैं।
पीठ ने केंद्र को आवश्यकता पड़ने पर बूस्टर खुराक देने और इसे लगाने की प्रस्तावित समयसीमा के संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
जजों ने यह भी कहा कि टीका लगवाने वाले व्यक्ति में एंटीबाडी का स्तर कुछ समय बाद कम हो जाता है। ऐसे में बुजुर्ग और बीमारियों से ग्रसित लोग फिलहाल ज्यादा चिंतित है।
उन्होंने पूछा, इस मामले में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइसीएमआर) का रुख क्या है। जरूरी होने पर आगे का रास्ता क्या है। इसके अलावा, यह भी पूछा कि जो टीके खराब होने वाले हैं, उन्हें पूर्ण टीकाकरण करा चुके लोगों को बूस्टर खुराक के रूप में क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को तय करते हुए पीठ ने केंद्र से बच्चों के टीकाकरण पर भी अपना पक्ष रिकॉर्ड पर लाने को कहा है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया ने पीठ को बताया, यह मुद्दा पहले से ही मुख्य न्यायाधीश की अदालत में लंबित है। इस संबंध में केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर बताया है कि बच्चों के टीकाकरण को पहले ही सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है और परीक्षण जारी है। इस पर पीठ ने कहा यह जानकारी यहां भी पेश कीजिए।
वहीं, अदालत मित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता राज शेखर राव ने कहा कि बूस्टर डोज की दक्षता विशेषज्ञों की राय का विषय है और केंद्र को इस पर एक नीति बनानी चाहिए। दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि सही चीजें सही समय पर की जानी चाहिए। यूरोप, अमेरिका नागरिकों को पहले से ही बूस्टर डोज दे रहे हैं।