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Investigation, Inspection And Analysis Necessary While Determining The Age Of The Accused – आरोपी की उम्र निर्धारित करते समय जांच, निरीक्षण और विश्लेषण जरूरी

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नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने बाल न्याय (संरक्षण एवं देखरेख) अधिनियम के तहत आरोपी की उम्र निर्धारित करते समय जांच, निरीक्षण और विश्लेषण को जरूरी बताया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि उम्र के निर्धारण का एक ऐसा मुद्दा है जिसे उचित महत्व देने और पूर्व-विचार करने की जरूरत है। यह तब ज्यादा अनिवार्य हो जाता है जब 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सुरक्षा का सवाल हो। वहीं कई मामलों में नाबालिग का दावा करने वाले बालिग निकले हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि खासकर ऐसे में मामलों में जांच निरीक्षण और विश्लेषण की जरूरत है जिसमें आरोपी नाबालिग घोषित करने की सीमा रेखा की उम्र के करीब हो। उन्होंने कहा कि कानून उन लोगों को प्रतिरक्षा की एक डिग्री प्रदान करता है जो बाल न्याय अधिनियम के तहत आयु पात्रता आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
सुरक्षा का सवाल हो तो ये जरूरी
अदालत ने कहा कि यह प्रतिरक्षा तब और भी अनिवार्य हो जाती है जब 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सुरक्षा का सवाल हो। कानूनी प्रावधान बच्चों के पुनर्वास और सुधार के मकसद से हैं और इनके तहत बच्चों की उचित देखभाल, सुरक्षा, विकास, उपचार, सामाजिक पुन: एकीकरण प्रदान करने के लिए निर्धारित किया गया है, जिनके अनुसार मुकदमा चलाया जा सकता है।
अदालत ने कहा है कि यह विधायिका के इरादे को दर्शाता है कि कानून के तहत कार्यवाही करते समय बच्चों की सुरक्षा को समायोजित करने के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता है और इसलिए अधिक सावधानी और ध्यान देने की जरूरत है। अदालत ने कहा कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी के नाबालिग होने का दावा करने वाली मेडिकल जांच के बाद 30 साल से अधिक उम्र का निकला।
मेडिकल जांच में ज्यादा निकली उम्र
उच्च न्यायालय ने विशाल उर्फ जॉनी की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। आरोपी ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें बाल न्याय (संरक्षण एवं देखभाल) अधिनियम, 2000 की धारा-7 ए के तहत नाबालिग घोषित करने की मांग की थी। अदालत ने अपील को खारिज कर दिया।
आरोपी विशाल को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त उसने अपनी उम्र 19 साल बताई थी। लेकिन कोई दस्तावेज नहीं होने से मेडिकल जांच कराई गई तो उसकी उम्र 20 साल निकली। हालांकि बाद में उसके पिता की स्व घोषणा के आधार पर जारी स्कूल प्रमाणपत्र का हवाला देकर आरोपी ने खुद को नाबालिग घोषित करने की मांग की।

नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने बाल न्याय (संरक्षण एवं देखरेख) अधिनियम के तहत आरोपी की उम्र निर्धारित करते समय जांच, निरीक्षण और विश्लेषण को जरूरी बताया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि उम्र के निर्धारण का एक ऐसा मुद्दा है जिसे उचित महत्व देने और पूर्व-विचार करने की जरूरत है। यह तब ज्यादा अनिवार्य हो जाता है जब 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सुरक्षा का सवाल हो। वहीं कई मामलों में नाबालिग का दावा करने वाले बालिग निकले हैं।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने कहा कि खासकर ऐसे में मामलों में जांच निरीक्षण और विश्लेषण की जरूरत है जिसमें आरोपी नाबालिग घोषित करने की सीमा रेखा की उम्र के करीब हो। उन्होंने कहा कि कानून उन लोगों को प्रतिरक्षा की एक डिग्री प्रदान करता है जो बाल न्याय अधिनियम के तहत आयु पात्रता आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

सुरक्षा का सवाल हो तो ये जरूरी

अदालत ने कहा कि यह प्रतिरक्षा तब और भी अनिवार्य हो जाती है जब 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सुरक्षा का सवाल हो। कानूनी प्रावधान बच्चों के पुनर्वास और सुधार के मकसद से हैं और इनके तहत बच्चों की उचित देखभाल, सुरक्षा, विकास, उपचार, सामाजिक पुन: एकीकरण प्रदान करने के लिए निर्धारित किया गया है, जिनके अनुसार मुकदमा चलाया जा सकता है।

अदालत ने कहा है कि यह विधायिका के इरादे को दर्शाता है कि कानून के तहत कार्यवाही करते समय बच्चों की सुरक्षा को समायोजित करने के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता है और इसलिए अधिक सावधानी और ध्यान देने की जरूरत है। अदालत ने कहा कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी के नाबालिग होने का दावा करने वाली मेडिकल जांच के बाद 30 साल से अधिक उम्र का निकला।

मेडिकल जांच में ज्यादा निकली उम्र

उच्च न्यायालय ने विशाल उर्फ जॉनी की ओर से निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। आरोपी ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें बाल न्याय (संरक्षण एवं देखभाल) अधिनियम, 2000 की धारा-7 ए के तहत नाबालिग घोषित करने की मांग की थी। अदालत ने अपील को खारिज कर दिया।

आरोपी विशाल को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त उसने अपनी उम्र 19 साल बताई थी। लेकिन कोई दस्तावेज नहीं होने से मेडिकल जांच कराई गई तो उसकी उम्र 20 साल निकली। हालांकि बाद में उसके पिता की स्व घोषणा के आधार पर जारी स्कूल प्रमाणपत्र का हवाला देकर आरोपी ने खुद को नाबालिग घोषित करने की मांग की।

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