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Farmer’s Movement Is Over, Now Efforts Will Be Made To Form A National Organization Of Farmers – किसान आंदोलन : सरकार ने सुनी फरियाद तो गहरी हुई मोर्चे की बुनियाद, अब कद बढ़ाने की तैयारी

सार

आंदोलन खत्म पर संयुक्त किसान मोर्चा हुआ स्थायी, अब किसानों का राष्ट्रीय संगठन बनाने की होगी कोशिश।

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केंद्र सरकार ने बेशक किसानों की सभी फरियादें पूरी कर दी हैं, आंदोलन भी खत्म हो गया है, बॉर्डर की डटे अन्नदाता घर लौटने को तैयार हैं, लेकिन आंदोलन चलाने के लिए बना संगठन भंग नहीं होगा। इसके उलट संयुक्त किसान मोर्चे की बुनियाद मजबूत हुई है। अब संगठन को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने की तैयारी है। किसान नेताओं का मानना है कि अब तक किसानों का कोई राष्ट्रीय संगठन नहीं है। आगे मोर्चा इसी खाई को भरेगा। आंदोलन खत्म होने के बाद संगठन का औपचारिक ढांचा तैयार होगा और भविष्य की कार्ययोजना भी। 15 जनवरी को होने वाली बैठक में इसका स्वरूप सामने आएगा।

दरअसल, सांगठनिक तौर पर संयुक्त किसान मोर्चा अभी बेहद लचीला संगठन है। इसकी नींव सितंबर 2020 में दिल्ली में पड़ी थी। उस वक्त करीब छह किसान संगठनों के समूह ने दिल्ली चलो का नारा दिया था। एलान 26 नवंबर 2020 को दिल्ली घेराव का था। दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचते ही किसानों को रोक दिया गया। इसके बाद किसानों ने सीमाओं की मोर्चाबंदी कर दी। किसान ठहरे, लेकिन आंदोलन परवान चढ़ता गया। इस बीच नौ सदस्यीय समन्वय समिति ही मोर्चा के नाम पर काम करती रही। आंदोलनरत किसानों ने मोर्चा के सांगठनिक मोर्चेबंदी की तरफ ध्यान नहीं दिया। इनका पूरा फोकस अपने लक्ष्य पर रहा। इससे दूर अपनी नजर किसान संगठनों ने नहीं की।

अब मांग पूरी होने के बाद किसानों को नेतृत्व मोर्चा को स्थायी स्वरूप देने की तैयारी है। औपचारिक ढांचा खड़ा करने के साथ इसकी कार्ययोजना बनाई जाएगी। जय किसान आंदोलन के अध्यक्ष अवीक साहा के मुताबिक, संयुक्त किसान मोर्चा किसानों का राष्ट्रीय संगठन बनेगा। 15 जनवरी की बैठक में जय किसान की तरफ से प्रस्ताव रखा जाएगा कि मोर्चा की सामान्य सभा गठित हो, जिसमें मोर्चा में शामिल करीब 550 किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व हो। साथ ही दिन-प्रतिदिन के कामों के लिए वर्किंग कमेटी बने। आगे कोशिश यह रहेगी कि किसानों के स्थानीय मसलों को मोर्चा मुखरता से राष्ट्रीय फलक तक ले जाएगा। वहीं, राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर मजबूती आवाज उठाई जाएगी।

संयुक्त किसान मोर्चे को सशक्त किया जाएगा। जिन राज्यों में मोर्चा अभी मौजूद है, वहां इसका जनाधार विस्तार होगा। जहां अभी पहुंच नहीं बन सकी है, वहां संगठन खड़ा किया जाएगा। मोर्चा किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेगा। हम सभी लोग लंबे वक्त से किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। सभी मसले सार्वजनिक हैं। इनका माकूल समाधान देने के लिए मोर्चा आगे काम करेगा। 
-युद्धवीर सिंह, सदस्य, समन्वय समिति, संयुक्त किसान मोर्चा

संयुक्त किसान मोर्चा आगे भी किसानों के लिए काम करता है। यहां इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि समस्या स्थानीय है या राष्ट्रीय। टूटने या बिखरने का तो कोई सवाल ही नहीं है।
-शिव कुमार कक्का, सदस्य, समन्वय समिति, संयुक्त किसान मोर्चा

आंदोलन के भीतर थे कई अंतर्विरोध, सोच, समझ और चर्चा से भरी खाई
बीते एक साल में किसान आंदोलन के भीतर कई तरह के अंतर्विरोध देखने को मिले। हर राज्य के किसान की अपनी समस्या है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली समेत दूसरे राज्यों के किसान की समस्याएं एक सी नहीं हैं। इसका एक नजारा हाल में उस वक्त दिखा, जब 19 नवंबर को किसान कानूनों को वापस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी। कोर कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, उस वक्त पंजाब की सभी 32 जत्थेबंदियां वापस जाने को तैयार थीं। उनका मानना था कि उनकी लड़ाई कानून को लेकर थी, एमएसपी उनके लिए बड़ा मसला नहीं है। ऐसे में अब सीमाओं पर बैठे रहने का कोई तुक नहीं है। इस पर नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई। काफी समझाने-बुझाने के बाद पंजाब के किसान संगठन रुकने को तैयार हुए।

एक किसान नेता ने बताया कि मोर्चा के लिए आगे की चुनौती भी यही है। और अभी तक राष्ट्रीय स्तर का किसान संगठन न बन पाने की पीछे का राज भी। अपने देश में किसान आंदोलनों के इतिहास में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे हैं। इसके लिए बने संगठनों की पहुंच स्थानीय होती है। पश्चिमी यूपी के किसान की  बड़ी समस्या गन्ने की कीमत और बकाया आदि है तो पूर्वी यूपी व बिहार की एमएसपी पर अनाज की खरीद। पंजाब के किसान को मंडी की मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं चाहते तो बुंदेलखंड व विदर्भ की सूदखोरी और पानी की समस्या से निजात लेनी है। दूसरे राज्यों की भी अपनी समस्याएं हैं। ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा किस तरह से इन सब मसलों को एक छतरी के नीचे लाएगा, इसी से राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनने की मोर्चा की चाहत पूरी हो सकेगी।

किसान आंदोलन में तमाम सुविधाएं मुहैया करवाने वाले एनजीओ खालसा एड ने अपनी आरे से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आंदोलन में इस्तेमाल सामान को अब वह जरूरतमंद ग्रामीणों को देने की योजना बना रहा है। इसमें पोर्टेबल टॉयलेट, एसी, वॉशिंग मशीन, पंखे, कूलर, कुर्सियां, कंबल, गद्दे, ड्रम और कपड़े शामिल हैं। 

खालसा एड ने सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन के प्रबंधन में अहम भूमिका निभाई थी। दिल्ली-करनाल के धूल भरे हिस्से को एक छोटे शहर में बदल दिया गया था। यहां हर जरूरी सुविधा थी। एनजीओ के इंडिया डायरेक्टर अमरप्रीत सिंह ने बताया कि उन्होंने जरूरतमंद लोगों की पहचान के लिए सर्वे करना निर्णय लिया है ताकि उन्हें आंदोलन में इस्तेमाल किया गया सामान दिया जा सके। 

उन्होंने कहा गांवों में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मदद की जरूरत है। ये सामान उनके लिए उपयोगी हो सकता है। एनजीओ ने आंदोलन पर चंदे में मिले करीब 10 करोड़ रुपये खर्च किए। आंदोलन के लिए एनजीओ को करीब 30 करोड़ रुपये का सामान मिला था। इस दौरान एनजीओ ने सिंघु और टीकरी बार्डर पर 40 हजार तोलिये और अंडर गारमेंट वितरित किए। इसके अलावा यहां पर किसान मॉल भी खोले गए जहां टूथ ब्रुश से लेकर जैकेट और शॉल तक खरीदे जा सकते थे।  

 

दिल्ली की तीनों सीमाओं पर लंबे समय तक चला आंदोलन सिर्फ अपनी मांगों को लेकर ही लोगों की जुबानों पर नहीं रहा। बल्कि, पड़ोसी राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के देसी ठाठ को लेकर भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा। आंदोलन के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों से लेकर खेलकूद समेत विभिन्न आयोजनों के तहत दिल्ली वालों ने पड़ोसी राज्यों के विभिन्न रंगों को देखा।

गाजीपुर बॉर्डर पर पंजाब व उत्तराखंड के साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश से पहुंचने वाले किसानों की संख्या भी अधिक रही। ऐसे में यहां पर देसी ठाठ के साथ किसानों की जमघट में हुक्कों की गुड़गुड़ाहट के बीच आंदोलन की रणनीतियां तय होती र्गइं। वहीं, समय-समय पर यहां दंगल और कबड्डी जैसे देसी खेलों से रंग जमाया गया। पंजाबी गायकों ने अपने सुरों से आंदोलनकारियों को हौसला बढ़ाया। दूसरी ओर सिंघु बॉर्डर पर पंजाब की संस्कृति देखने को मिली। यहां खानपान को लेकर ही लगाई गई मशीनों ने लोगों को अधिक ध्यान खींचा।

आंदोलन के दौरान अपने साथ रसद लेकर पहुंचे किसानों ने कुछ समय के भीतर ही यहां बड़े रसोईघर को स्थापित कर दिया गया था, जिसमें चावल और दाल पकाने से लेकर रोटियां बनाने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें लगाई गई थी। अकेले सिंघु बॉर्डर पर ही प्रतिदिन लाखों लोगों का खाना बनकर तैयार होता था। पंजाब के मशहूर व्यंजन मक्के की रोटी, सरसो का साग, छाछ, घी व मक्खन का स्वाद लेने के लिए आसपास के लोग भी लंगर में शामिल होते थे। इसी तरह की स्थिति गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर पर भी रहती थी। 

पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिर खत्म हो गया। एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस के जवानों के खट्टे-मीठे अनुभव रहे। कभी इनको किसानों का प्यार मिला तो कभी इन्हें  किसानों के तानों का सामना करना पड़ा। दिन-रात दिल्ली पुलिस के जवान राजधानी की सीमाओं पर डटे रहे। यहां तक तीनों प्रदर्शन स्थल (टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर) के नजदीकी थानों में तो जवानों को छुट्टियां भी नहीं मिली।

इन थानों के जवानों का कहना है कि अक्सर रोजाना ही किसान नेता कुछ न कुछ घोषणा कर देते थे, जिसके बाद पुलिस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ती थी। मुख्य रूप से पूर्वी, बाहरी और बाहरी-उत्तरी जिला पुलिस प्रदर्शन को लेकर पूरे ही साल व्यस्थ रही। हालांकि जिन जिलों में दूसरे राज्यों की सीमाएं लगी हुई हैं, वहां सभी बॉर्डर पर पूरे साल ही पुलिस अलर्ट मोड में रही।

उधर, आंदोलन के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के रोकने के लिए दिल्ली पुलिस की ओर से करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस ने 7.38 करोड़ रुपये सुरक्षा पर खर्च किए हैं। वहीं, पूरे साल तीनों बॉर्डर पर लोकल पुलिस के अलावा अर्द्धसैनिक बलों की कई कंपनियां भी तैनात रही। 26 जनवरी 2021 को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान राजधानी में खूब हंगामा हुआ। किसानों के एक समूह ने लाल किला पर धार्मिक झंडा फहरा दिया।

उस दिन हुए बवाल के दौरान 425 पुलिस के जवान जख्मी हुए। ट्रैक्टर पलटने के दौरान एक किसान की मौत हो गई। पुलिस ने इस संबंध में करीब 75 एफआईआर दर्ज कर 183 लोगों को गिरफ्तार किया। पूरे ही साल तीनों बॉर्डर पर कुछ न कुछ चलता रहा। इस दौरान नरेला थाना प्रभारी विनय कुमार, अलीपुर थाना प्रभारी प्रदीप पालीवाल और समयपुर बादली थाना प्रभारी तलवार लगने और पथराव में जख्मी भी हुए।

हालांकि, किसान आंदोलन का एक पहलू यह भी है कि किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर तैनात जवानों को कभी खाने-पीने की कमी नहीं होने दी। गाजीपुर बॉर्डर पर तैनात एक हवलदार ने बताया कि वह लगभग पूरे साल ही बॉर्डर पर तैनात रहा। यहां दिन में कई बार किसान चाय और पकौड़े लेकर आते थे।

किसानों का कहना था कि जवान तो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, हैं तो वह किसानों के ही बेटे। बहुत से पुलिस के जवान भी अंदर से किसानों के साथ थे। गाजीपुर थाने में तैनात पश्चिम उत्तर-प्रदेश के जवान ने बताया कि यहां धरने पर बैठे किसान उसके एरिया के थे। वह कृषि बिलों का खुलकर विरोध नहीं कर सकता था। ड्यूटी अपनी जगह थी और किसानों का साथ एक अलग बात थी।

विस्तार

केंद्र सरकार ने बेशक किसानों की सभी फरियादें पूरी कर दी हैं, आंदोलन भी खत्म हो गया है, बॉर्डर की डटे अन्नदाता घर लौटने को तैयार हैं, लेकिन आंदोलन चलाने के लिए बना संगठन भंग नहीं होगा। इसके उलट संयुक्त किसान मोर्चे की बुनियाद मजबूत हुई है। अब संगठन को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने की तैयारी है। किसान नेताओं का मानना है कि अब तक किसानों का कोई राष्ट्रीय संगठन नहीं है। आगे मोर्चा इसी खाई को भरेगा। आंदोलन खत्म होने के बाद संगठन का औपचारिक ढांचा तैयार होगा और भविष्य की कार्ययोजना भी। 15 जनवरी को होने वाली बैठक में इसका स्वरूप सामने आएगा।

दरअसल, सांगठनिक तौर पर संयुक्त किसान मोर्चा अभी बेहद लचीला संगठन है। इसकी नींव सितंबर 2020 में दिल्ली में पड़ी थी। उस वक्त करीब छह किसान संगठनों के समूह ने दिल्ली चलो का नारा दिया था। एलान 26 नवंबर 2020 को दिल्ली घेराव का था। दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचते ही किसानों को रोक दिया गया। इसके बाद किसानों ने सीमाओं की मोर्चाबंदी कर दी। किसान ठहरे, लेकिन आंदोलन परवान चढ़ता गया। इस बीच नौ सदस्यीय समन्वय समिति ही मोर्चा के नाम पर काम करती रही। आंदोलनरत किसानों ने मोर्चा के सांगठनिक मोर्चेबंदी की तरफ ध्यान नहीं दिया। इनका पूरा फोकस अपने लक्ष्य पर रहा। इससे दूर अपनी नजर किसान संगठनों ने नहीं की।

अब मांग पूरी होने के बाद किसानों को नेतृत्व मोर्चा को स्थायी स्वरूप देने की तैयारी है। औपचारिक ढांचा खड़ा करने के साथ इसकी कार्ययोजना बनाई जाएगी। जय किसान आंदोलन के अध्यक्ष अवीक साहा के मुताबिक, संयुक्त किसान मोर्चा किसानों का राष्ट्रीय संगठन बनेगा। 15 जनवरी की बैठक में जय किसान की तरफ से प्रस्ताव रखा जाएगा कि मोर्चा की सामान्य सभा गठित हो, जिसमें मोर्चा में शामिल करीब 550 किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व हो। साथ ही दिन-प्रतिदिन के कामों के लिए वर्किंग कमेटी बने। आगे कोशिश यह रहेगी कि किसानों के स्थानीय मसलों को मोर्चा मुखरता से राष्ट्रीय फलक तक ले जाएगा। वहीं, राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर मजबूती आवाज उठाई जाएगी।

संयुक्त किसान मोर्चे को सशक्त किया जाएगा। जिन राज्यों में मोर्चा अभी मौजूद है, वहां इसका जनाधार विस्तार होगा। जहां अभी पहुंच नहीं बन सकी है, वहां संगठन खड़ा किया जाएगा। मोर्चा किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेगा। हम सभी लोग लंबे वक्त से किसानों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। सभी मसले सार्वजनिक हैं। इनका माकूल समाधान देने के लिए मोर्चा आगे काम करेगा। 

-युद्धवीर सिंह, सदस्य, समन्वय समिति, संयुक्त किसान मोर्चा

संयुक्त किसान मोर्चा आगे भी किसानों के लिए काम करता है। यहां इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि समस्या स्थानीय है या राष्ट्रीय। टूटने या बिखरने का तो कोई सवाल ही नहीं है।

-शिव कुमार कक्का, सदस्य, समन्वय समिति, संयुक्त किसान मोर्चा

आंदोलन के भीतर थे कई अंतर्विरोध, सोच, समझ और चर्चा से भरी खाई

बीते एक साल में किसान आंदोलन के भीतर कई तरह के अंतर्विरोध देखने को मिले। हर राज्य के किसान की अपनी समस्या है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली समेत दूसरे राज्यों के किसान की समस्याएं एक सी नहीं हैं। इसका एक नजारा हाल में उस वक्त दिखा, जब 19 नवंबर को किसान कानूनों को वापस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी। कोर कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, उस वक्त पंजाब की सभी 32 जत्थेबंदियां वापस जाने को तैयार थीं। उनका मानना था कि उनकी लड़ाई कानून को लेकर थी, एमएसपी उनके लिए बड़ा मसला नहीं है। ऐसे में अब सीमाओं पर बैठे रहने का कोई तुक नहीं है। इस पर नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई। काफी समझाने-बुझाने के बाद पंजाब के किसान संगठन रुकने को तैयार हुए।

एक किसान नेता ने बताया कि मोर्चा के लिए आगे की चुनौती भी यही है। और अभी तक राष्ट्रीय स्तर का किसान संगठन न बन पाने की पीछे का राज भी। अपने देश में किसान आंदोलनों के इतिहास में स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे हैं। इसके लिए बने संगठनों की पहुंच स्थानीय होती है। पश्चिमी यूपी के किसान की  बड़ी समस्या गन्ने की कीमत और बकाया आदि है तो पूर्वी यूपी व बिहार की एमएसपी पर अनाज की खरीद। पंजाब के किसान को मंडी की मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं चाहते तो बुंदेलखंड व विदर्भ की सूदखोरी और पानी की समस्या से निजात लेनी है। दूसरे राज्यों की भी अपनी समस्याएं हैं। ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा किस तरह से इन सब मसलों को एक छतरी के नीचे लाएगा, इसी से राष्ट्रीय स्तर का संगठन बनने की मोर्चा की चाहत पूरी हो सकेगी।

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