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Thalassemia Patients Can Be Transplanted Even By Half Match North India’s First Such Thalassemia Bmt Clinic In Dharamshila Hospital – राहत की खबर: अब हॉफ मैच से थैलेसीमिया रोगियों का हो सकता है प्रत्यारोपण, ये है उत्तर भारत का पहला क्लीनिक

सार

डॉ. सरिता जैसवाल ने बताया कि हॉफ मैच तकनीक के जरिए भी प्रत्यारोपण किया जा रहा है। अब तक 15 ऐसे केस किए जा चुके हैं। इन्हें  क्लीनिकल ट्रायल के तहत उनके यहां किया जा रहा है और अब तक इसकी सफलता दर 90 फीसदी तक देखने को मिली है। 
 

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थैलेसीमिया रोगियों के लिए राहत की खबर है। अब हॉफ मैच तकनीक के जरिए भी उन्हें इस बीमारी से निजात मिल सकती है। डॉक्टर इस तकनीक के जरिए बोन मैरो प्रत्यारोपण करते हैं जो आजीवन बार बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की परेशानी से मुक्त करता है। हालांकि इसके लिए अनुभवी डॉक्टर और एक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले संस्थान का चयन करना भी जरूरी होता है। उत्तर भारत का पहला ऐसा थैलेसीमिया बीएमटी क्लीनिक धर्मशिला अस्पतल में शुरू हुआ है। 

अस्पताल की वरिष्ठ डॉ. सरिता जैसवाल ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि भारत सबसे ज्यादा थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों की संख्या वाले देशों में से एक है और यह संख्या तकरीबन एक लाख है। वहीं अन्य चिकित्सीय अध्ययन बताते हैं कि हर साल 10 हजार से अधिक बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। नियमित चलती दवाएं, हर दो से तीन हफ़्तों में रक्त की आवश्यकता, मरीज के साथ पूरे परिवार को मनोबल बनाए रखना आदि थैलेसीमिया इलाज का हिस्सा होते हैं लेकिन कोरोना महामारी ने इन मरीजों को काफी प्रभावित किया है। इसीलिए थैलेसीमिया सेंटर एवं बीएमटी क्लीनिक की स्थापना हुई है जिसके जरिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन के अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांट इत्यादि की सेवाएं दी जा रही हैं। 

थैलेसीमिक्स इंडिया की सचिव शोभा तुली ने थैलेसीमिया रोगियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर जोर देते हुए कहा कि इस तरह के क्लीनिक देश के अलग-अलग हिस्सों में शुरू होने चाहिए ताकि लोगों को समय रहते उपचार मिल सके। दो से दस वर्ष की आयु के बीच बच्चों का प्रत्यारोपण करते हुए उन्हें रोग से मुक्ति दिलाई जा सकती है लेकिन इस आयु के बाद यह संभव नहीं हो पाता है और ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिन्हें देरी से जानकारी होने के कारण उनके बच्चों का समय खत्म हो जाता है। 

 

अस्पताल की वरिष्ठ डॉ. सुपर्णो चक्रवर्ती ने बताया कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रूप से होने वाली बीमारी है जिसके तहत व्यक्ति में रक्त की कोशिकाएं आम व्यक्ति से कम रहतीं हैं या उनमें विकृतियां हो सकती है। इसके रोगी को रक्त की आपूर्ति के लिए जीवनपर्यंत खून चढ़ाने पर निर्भर रहना पड़ सकता है। थैलेसीमिया समेत अन्य रक्त के विकारों की बात करें तो सिकल सेल एनीमिया जैसे रोग भी इसमें शामिल हैं। ऐसे रोगों के सदर्भ में बीएमटी को जटिल लेकिन सफल इलाज की श्रेणी में रखा जाता है। उन्होंने बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट यानी अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण ल्यूकीमिया, लिम्फोमा, अप्लास्टिक एनीमिया, स्किल एनीमिया, थैलेसीमिया में किया जाता है। 

 

डॉ. सरिता जैसवाल ने बताया कि मरीज की प्रभावित बोन मैरो को स्वस्थ बोन मैरो से बदल दिया जाता है। इससे नई कोशिकाएं शरीर में मौजूद संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं। अभी तक इसके लिए 100 फीसदी एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) का मिलान जरूरी था जो कि लाखों में से किसी एक का होता है। लेकिन अब 50 फीसदी एचएलए मिलान के साथ ही यह संभव है जिसे हैप्लो आइडेंटिकल यानी हाफ मैच बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन कहते हैं। उन्होंने बताया कि इसमें क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को डोनर की स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं से प्रत्यारोपित करते हैं। इस प्रक्रिया में डोनर को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है, न ही मरीज का कोई ऑपरेशन कराया जाता है।

विस्तार

थैलेसीमिया रोगियों के लिए राहत की खबर है। अब हॉफ मैच तकनीक के जरिए भी उन्हें इस बीमारी से निजात मिल सकती है। डॉक्टर इस तकनीक के जरिए बोन मैरो प्रत्यारोपण करते हैं जो आजीवन बार बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की परेशानी से मुक्त करता है। हालांकि इसके लिए अनुभवी डॉक्टर और एक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले संस्थान का चयन करना भी जरूरी होता है। उत्तर भारत का पहला ऐसा थैलेसीमिया बीएमटी क्लीनिक धर्मशिला अस्पतल में शुरू हुआ है। 

अस्पताल की वरिष्ठ डॉ. सरिता जैसवाल ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि भारत सबसे ज्यादा थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों की संख्या वाले देशों में से एक है और यह संख्या तकरीबन एक लाख है। वहीं अन्य चिकित्सीय अध्ययन बताते हैं कि हर साल 10 हजार से अधिक बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। नियमित चलती दवाएं, हर दो से तीन हफ़्तों में रक्त की आवश्यकता, मरीज के साथ पूरे परिवार को मनोबल बनाए रखना आदि थैलेसीमिया इलाज का हिस्सा होते हैं लेकिन कोरोना महामारी ने इन मरीजों को काफी प्रभावित किया है। इसीलिए थैलेसीमिया सेंटर एवं बीएमटी क्लीनिक की स्थापना हुई है जिसके जरिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन के अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांट इत्यादि की सेवाएं दी जा रही हैं। 

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