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Farmers Protest End Delhi Police Standing On Borders Sometimes Got Love, Sometimes Taunts – किसान आंदोलन खत्म: पल-पल बदलती थी पुलिस की रणनीति, कभी मिला प्यार तो कभी ताने

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पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिर खत्म हो गया। एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस के जवानों के खट्टे-मीठे अनुभव रहे। कभी इनको किसानों का प्यार मिला तो कभी इन्हें  किसानों के तानों का सामना करना पड़ा। 

दिन-रात दिल्ली पुलिस के जवान राजधानी की सीमाओं पर डटे रहे। यहां तक तीनों प्रदर्शन स्थल (टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर) के नजदीकी थानों में तो जवानों को छुट्टियां भी नहीं मिली। इन थानों के जवानों का कहना है कि अक्सर रोजाना ही किसान नेता कुछ न कुछ घोषणा कर देते थे, जिसके बाद पुलिस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ती थी। 

मुख्य रूप से पूर्वी, बाहरी और बाहरी-उत्तरी जिला पुलिस प्रदर्शन को लेकर पूरे ही साल व्यस्थ रही। हालांकि जिन जिलों में दूसरे राज्यों की सीमाएं लगी हुई हैं, वहां सभी बॉर्डर पर पूरे साल ही पुलिस अलर्ट मोड में रही।

उधर, आंदोलन के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के रोकने के लिए दिल्ली पुलिस की ओर से करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस ने 7.38 करोड़ रुपये सुरक्षा पर खर्च किए हैं। 
वहीं, पूरे साल तीनों बॉर्डर पर लोकल पुलिस के अलावा अर्द्धसैनिक बलों की कई कंपनियां भी तैनात रही। 26 जनवरी 2021 को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान राजधानी में खूब हंगामा हुआ। किसानों के एक समूह ने लाल किला पर धार्मिक झंडा फहरा दिया। उस दिन हुए बवाल के दौरान 425 पुलिस के जवान जख्मी हुए। 

ट्रैक्टर पलटने के दौरान एक किसान की मौत हो गई। पुलिस ने इस संबंध में करीब 75 एफआईआर दर्ज कर 183 लोगों को गिरफ्तार किया। पूरे ही साल तीनों बॉर्डर पर कुछ न कुछ चलता रहा। इस दौरान नरेला थाना प्रभारी विनय कुमार, अलीपुर थाना प्रभारी प्रदीप पालीवाल और समयपुर बादली थाना प्रभारी तलवार लगने और पथराव में जख्मी भी हुए।

हालांकि, किसान आंदोलन का एक पहलू यह भी है कि किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर तैनात जवानों को कभी खाने-पीने की कमी नहीं होने दी। गाजीपुर बॉर्डर पर तैनात एक हवलदार ने बताया कि वह लगभग पूरे साल ही बॉर्डर पर तैनात रहा। यहां दिन में कई बार किसान चाय और पकौड़े लेकर आते थे। 

किसानों का कहना था कि जवान तो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं, हैं तो वह किसानों के ही बेटे। बहुत से पुलिस के जवान भी अंदर से किसानों के साथ थे। गाजीपुर थाने में तैनात पश्चिम उत्तर-प्रदेश के जवान ने बताया कि यहां धरने पर बैठे किसान उसके एरिया के थे। वह कृषि बिलों का खुलकर विरोध नहीं कर सकता था। ड्यूटी अपनी जगह थी और किसानों का साथ एक अलग बात थी।

पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ किसान आंदोलन आखिर खत्म हो गया। एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस के जवानों के खट्टे-मीठे अनुभव रहे। कभी इनको किसानों का प्यार मिला तो कभी इन्हें  किसानों के तानों का सामना करना पड़ा। 

दिन-रात दिल्ली पुलिस के जवान राजधानी की सीमाओं पर डटे रहे। यहां तक तीनों प्रदर्शन स्थल (टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर) के नजदीकी थानों में तो जवानों को छुट्टियां भी नहीं मिली। इन थानों के जवानों का कहना है कि अक्सर रोजाना ही किसान नेता कुछ न कुछ घोषणा कर देते थे, जिसके बाद पुलिस को अपनी रणनीति बदलनी पड़ती थी। 

मुख्य रूप से पूर्वी, बाहरी और बाहरी-उत्तरी जिला पुलिस प्रदर्शन को लेकर पूरे ही साल व्यस्थ रही। हालांकि जिन जिलों में दूसरे राज्यों की सीमाएं लगी हुई हैं, वहां सभी बॉर्डर पर पूरे साल ही पुलिस अलर्ट मोड में रही।

उधर, आंदोलन के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के रोकने के लिए दिल्ली पुलिस की ओर से करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस ने 7.38 करोड़ रुपये सुरक्षा पर खर्च किए हैं। 

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