BSP अपने गृहजनपद समेत पूरे यूपी में बेदम, मायावती ने अब तक कोई रैली नहीं, 15 साल में 18% वोट घटा, 35% जाटव वोटर ने भी साथ छोड़ा, पहले से ही नाराज है ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, गौतमबुद्ध नगर मायावती का घर, घर में बसपा संगठन लापता, घर में उम्मीद नहीं बसपा प्रत्याशी राजेंद्र सोलंकी को वो रैली करेंगे या नहीं?
ग्रेटर नोएडा, रफ्तार टुडे। BSP अपने गृहजनपद समेत पूरे यूपी में बेदम लग रही है। मायावती ने अब तक कोई रैली नहीं की है। जबकि उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस, बीजेपी, सपा और बहुत सारे पार्टी अपनी रैली कर चुकी है। 5 साल में 18% वोट घटा, 35% जाटव वोटर ने भी साथ छोड़ा। पहले से ही उनकी राजनीतिक कहावत तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार इससे जहां ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य, नाराज है वहीं गौतमबुद्ध नगर मायावती का गृह जनपद है और घर में बसपा संगठन लापता है। घर में उम्मीद नहीं कि बसपा प्रत्याशी राजेंद्र सोलंकी को मायावाती रैली करेंगे या नहीं? या फिर उन्हें मायावती के भतीजे आनंद से संतोष करना पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव का ऐलान हुए करीब 18 दिन हो गए। 19 अप्रैल को पहले चरण की सीटों पर वोटिंग है। सीएम योगी आदित्यनाथ हर दिन करीब 3 जिलों में रैलियां कर रहे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अलग-अलग जिलों में जा रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती अभी पूरी तरह से शांत हैं। उन्होंने इन 19 दिनों में कोई रैली नहीं की। फिलहाल, जो आंकड़े और सर्वे रिपोर्ट्स सामने आ रही, उसमें बसपा की राह आसान नहीं दिखती। नतीजे और पार्टी का भविष्य क्या होगा? वह 4 जून को पता चल पाएगा।
मायावती चुनाव से ठीक 5 दिन पहले यूपी में पहली रैली करेंगी। 2022 के चुनाव में भी उन्होंने वोटिंग से 8 दिन पहले रैली की शुरुआत की थी। नतीजे आए तो पार्टी को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली थीं। CSDS (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के मुताबिक बसपा का कोर वोटर जाटव भी 35% कटकर दूसरे दलों के साथ चला गया है। 15 सालों में पार्टी का वोट 30% से घटकर 12% पर आ गया। बसपा इस वक्त अपने 40 सालों के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। मायावती एक्टिव नहीं हैं। इसकी क्या वजह है? पहले क्या स्थिति थी? आज सब समझेंगे, पहले बुधवार शाम आई प्रत्याशियों की लिस्ट देखते हैं, पार्टी अब तक 37 प्रत्याशियों का ऐलान कर चुकी है।
6 दिन में योगी 16 जिलों में गए, मायावती कहीं नहीं
योगी आदित्यनाथ 27 मार्च से 3 अप्रैल तक कुल 16 जिलों में जा चुके हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस दौरान करीब 4 जिलों में पहुंचे। लेकिन मायावती 16 मार्च को हुए चुनाव ऐलान के बाद कहीं भी रैली करने नहीं पहुंचीं। उनकी पहली रैली 11 अप्रैल को नागपुर में है। जिस यूपी में उनका सबसे ज्यादा वोट बैंक है वहां वह 14 अप्रैल को पहली रैली करेंगी।2022 के विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने पहली रैली 2 फरवरी को आगरा में की थी, जबकि 10 अप्रैल से वोटिंग शुरू हुई थी। उस चुनाव में बसपा को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली थी और सिर्फ 12.88% ही वोट मिले थे।
दलित वोटर मायावती की बेरुखी चल रही है। मायावती की सक्रियता बेहद कम हो गई है। इसी वजह से उनका कोर वोटर दलित भी अब विकल्प तलाश रहा है। पहले उन्हें 30% वोट मिलते थे, यह घटकर 12% पर आ गया है। उनसे जो टूटे वह बीजेपी व सपा में चले गए। आगे यह वोट बैंक वापस 30% पर पहुंच जाए। इसकी संभावना अभी तो फिलहाल नजर नहीं आती।
लोकसभा चुनाव में 40 रैलियां करेंगी। मायावती इस चुनाव में 14 अप्रैल को सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में प्रचार करेंगी। इसके बाद वह पूरे चुनाव में करीब 40 रैलियां करेंगी। जिस सहारनपुर से वह चुनाव प्रचार की शुरुआत करने जा रही हैं वहां 2019 में उन्हें जीत मिली थी, लेकिन उस वक्त के जीते सांसद हाजी फजलुर्रहमान को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है, उनके स्थान पर माजिद अली प्रत्याशी हैं। मायावती ने इस चुनाव से पहले अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया था। संभावना थी कि वह इस चुनाव में ज्यादा एक्टिव रहेंगे लेकिन अब तक ऐसा नहीं दिखा। आकाश 6 अप्रैल को नगीना में अपनी पहली चुनावी सभा करेंगे।
CSDS ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट जारी की थी। उस सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 87% जाटवों ने बीएसपी को वोट दिया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या घटकर 65% पर आ गई। 2024 के चुनाव में इसका 50% तक आने की संभावना है। बीएसपी के लिए यह चिंताजनक है। दलित वर्ग में कुल 66 उपजाति हैं। पूरे प्रदेश में इनकी कुल आबादी करीब 22% है। इसमें 50% आबादी जाटव बिरादरी की है। मायावती भी इसी वर्ग से आती हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 12.9% वोट मिले थे, इसमें करीब 8% वोट जाटवों का ही था। अब अगर यह भी टूटते हैं तो बीएसपी को मुश्किल होगी।
सोशल इंजीनियरिंग में भी पिछड़ी पार्टी
पार्टी पहले ऐसे नहीं थी। साल 2000 से 2014 तक पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह रहता था। प्रत्याशियों की सूची 2-2 साल पहले आ जाती थी। जीतने के लिए चुनाव लड़ा जाता था। लेकिन 2014 के बाद मायावती की सक्रियता कम होती चली गई। पार्टी के दूसरे नेताओं को साइड कर दिया गया। सोशल इंजीनियरिंग के मामले में भी पार्टी पीछे होती चली गई। 2007 में दलित-ब्राह्मण को एक साथ लेकर आए और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई लेकिन अब उनकी तरफ से ऐसा प्रयास दिखता नहीं। प्रत्याशी भी तब उतारा जाता है जब बाकी लोग उतार चुके होते हैं।