सार
विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर विशेषज्ञों ने दी सलाह और बताया कि इंजेक्शन के जरिए भी फैल रहा है संक्रमण।
विश्व एड्स दिवस
– फोटो : अमर उजाला
एड्स से संबंधित मौत और नए संक्रमणों में कमी जरूर आ रही है लेकिन इसे खत्म करने की प्रक्रिया तेज नहीं हो पा रही है। मंगलवार को विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर डॉक्टरों ने कहा कि कोरोना महामारी की तरह एड्स के खिलाफ भी राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई लड़नी चाहिए और इससे समाज को मुक्त दिलाने पर जोर देना चाहिए।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 19 वर्ष और उससे कम उम्र के करीब 30 लाख व्यक्ति दुनिया भर में एचआईवी से संक्रमित हैं। वहीं साल 2030 तक दो लाख नए संक्रमणों को रोका जा सकता है। ऐसे में राजधानी के डॉक्टरों का कहना है कि एचआईवी की रोकथाम, देखभाल और उपचार सेवाओं के अलावा परीक्षण और निदान के लिए पर्याप्त पहुंच प्रदान करना जरूरी है। संक्रमित बच्चे और किशोर अपनी बीमारी से अनजान हैं और जब भी परीक्षण किया जाता है तो वे एचआईवी पॉजिटिव पाए जाते हैं, फिर भी शायद ही कभी उचित उपचार का पालन हो पाता है।
दरअसल दिल्ली में करीब 90 इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) और 400 से अधिक प्राइवेट केंद्र मौजूद हैं। इनके अलावा 11 एआरटी केंद्र भी हैं। साल 2018 के दौरान राजधानी में कुल एड्स रोगियों की संख्या करीब 66 हजार थी जो साल 2019 में बढ़कर 68 हजार तक पहुंच गई है।
दिल्ली राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के अनुसार अक्सर संक्रमित रोगी और उपचाराधीन की संख्या में अंतर देखने को मिलता है। इसकी एक वजह मरीजों का दवा निरंतर नहीं लेना, बाहरी राज्य से आकर यहां जांच कराना और दो अलग अलग केंद्र पर पंजीकृत होना इत्यादि मुख्य हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2017-18 के दौरान दिल्ली में 6563, वर्ष 2016 में 6340 और वर्ष 2015 में 6622 नए मरीजों की पहचान हुई थी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
सफदरजंग अस्पताल के डॉ. सुरेश बताते हैं कि एचआईवी वायरस रिजर्वोयर सेल्स में छिपा रहता है। इन छिपी हुई रिजर्वोयर सेल्स को खत्म करना आवश्यक है ताकि उपचार हो सके। उन्होंने कहा कि कई लोग नियमित जांच कराने से बचते हैं। जबकि इससे उनकी परेशानी और बढ़ती है। वहीं नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों का कहना है कि एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद वायरल लोड और सीडी 4 काउंट की जांच के बाद ही दवा शुरू की जाती है। सही समय पर सेंटर आने वाले ज्यादातर पॉजिटिव मरीज ऐसे होते हैं, जिनको लंबे समय तक दवा की जरूरत ही नहीं पड़ती। हालांकि एम्स के डॉक्टरों का यह भी मानना है कि पहले की तुलना में अब एचआईवी को लेकर जागरुकता देखने को मिल रही है और इस बीमारी को लेकर लोगों में झिझक भी कम हो रही है।
सेक्स से ज्यादा इंजेक्शन से हो रहे हैं मरीज
एड्स को लेकर सबसे पहली चीज जो दिमाग में आती है वह है असुरक्षित यौन संबंध। इसके लिए महिला सेक्स वर्कर, समलैंगिक, ट्रांस जेंडर, दूसरे राज्यों से आने वाले कामगार और लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर को सबसे ज्यादा संभावित वर्ग में रखा जाता है। मार्च 2020 तक के आंकड़ों के अनुसार राजधानी में इन सभी की कुल संख्या 4.50 लाख है। इनमें करीब 20 फीसदी लोग सावधानी और सुरक्षा के अभाव में एड्स का शिकार हो रहे हैं लेकिन इंजेक्शन से नशा करने वालों में यह और भी तेजी से फैल रहा है।
कुछ जरूरी तथ्य
- सुरक्षित सेक्स के लिए एबीसी: एब्सटेन यानी संयम, बी फेथफुल यानी अपने साथी के प्रति वफादार रहें और कंडोम का प्रयोग करें।
- शराब पीने या ड्रग्स लेने से जांच प्रभावित हो सकती है। यहां तक कि जो लोग एड्स के जोखिमों को समझते हैं और सुरक्षित सेक्स का महत्व भी जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाह हो सकते हैं।
- एसटीआई वाले लोगों को शीघ्र उपचार की तलाश करनी चाहिए।
- प्रयुक्त संक्रमित रेजर ब्लेड, चाकू या उपकरण जो त्वचा को काटते या छेदते हैं, उनमें एचआईवी फैलने का कुछ जोखिम भी होता है।
- एचआईवी पॉजिटिव लोगों को खुद चाहे पता न लगे, फिर भी वे अनजाने में वायरस को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।
एचआईवी रोगियों में कोरोना संक्रमण कम सामान्य और पहले से बीमार मरीजों की तुलना में एचआईवी रोगियों में कोरोना संक्रमण की आशंका कम है। इसी साल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सीरो सर्वे में यह पुष्टि हुई थी जिसमें पता चला कि आबादी की तुलना में एचआईवी रोगियों में कोरोना वायरस का संक्रमण काफी कम देखने को मिला है। दिल्ली और आसपास के राज्यों से एम्स आने वाले एचआईवी रोगियों की एंटीबॉडी जांच करने के बाद यह सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई थी।
पूरे देश में स्थिति
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में एचआईवी संक्रमित मरीजों की संख्या 23.49 लाख थी जोकि अब बढ़कर 24 लाख से अधिक होने का अनुमान है। हालांकि इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 से 2019 के बीच 37 फीसदी मरीजों में कमी भी आई है।
विस्तार
एड्स से संबंधित मौत और नए संक्रमणों में कमी जरूर आ रही है लेकिन इसे खत्म करने की प्रक्रिया तेज नहीं हो पा रही है। मंगलवार को विश्व एड्स दिवस की पूर्व संध्या पर डॉक्टरों ने कहा कि कोरोना महामारी की तरह एड्स के खिलाफ भी राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई लड़नी चाहिए और इससे समाज को मुक्त दिलाने पर जोर देना चाहिए।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 19 वर्ष और उससे कम उम्र के करीब 30 लाख व्यक्ति दुनिया भर में एचआईवी से संक्रमित हैं। वहीं साल 2030 तक दो लाख नए संक्रमणों को रोका जा सकता है। ऐसे में राजधानी के डॉक्टरों का कहना है कि एचआईवी की रोकथाम, देखभाल और उपचार सेवाओं के अलावा परीक्षण और निदान के लिए पर्याप्त पहुंच प्रदान करना जरूरी है। संक्रमित बच्चे और किशोर अपनी बीमारी से अनजान हैं और जब भी परीक्षण किया जाता है तो वे एचआईवी पॉजिटिव पाए जाते हैं, फिर भी शायद ही कभी उचित उपचार का पालन हो पाता है।
दरअसल दिल्ली में करीब 90 इंटीग्रेटेड काउंसलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) और 400 से अधिक प्राइवेट केंद्र मौजूद हैं। इनके अलावा 11 एआरटी केंद्र भी हैं। साल 2018 के दौरान राजधानी में कुल एड्स रोगियों की संख्या करीब 66 हजार थी जो साल 2019 में बढ़कर 68 हजार तक पहुंच गई है।
दिल्ली राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के अनुसार अक्सर संक्रमित रोगी और उपचाराधीन की संख्या में अंतर देखने को मिलता है। इसकी एक वजह मरीजों का दवा निरंतर नहीं लेना, बाहरी राज्य से आकर यहां जांच कराना और दो अलग अलग केंद्र पर पंजीकृत होना इत्यादि मुख्य हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2017-18 के दौरान दिल्ली में 6563, वर्ष 2016 में 6340 और वर्ष 2015 में 6622 नए मरीजों की पहचान हुई थी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
सफदरजंग अस्पताल के डॉ. सुरेश बताते हैं कि एचआईवी वायरस रिजर्वोयर सेल्स में छिपा रहता है। इन छिपी हुई रिजर्वोयर सेल्स को खत्म करना आवश्यक है ताकि उपचार हो सके। उन्होंने कहा कि कई लोग नियमित जांच कराने से बचते हैं। जबकि इससे उनकी परेशानी और बढ़ती है। वहीं नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों का कहना है कि एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद वायरल लोड और सीडी 4 काउंट की जांच के बाद ही दवा शुरू की जाती है। सही समय पर सेंटर आने वाले ज्यादातर पॉजिटिव मरीज ऐसे होते हैं, जिनको लंबे समय तक दवा की जरूरत ही नहीं पड़ती। हालांकि एम्स के डॉक्टरों का यह भी मानना है कि पहले की तुलना में अब एचआईवी को लेकर जागरुकता देखने को मिल रही है और इस बीमारी को लेकर लोगों में झिझक भी कम हो रही है।
सेक्स से ज्यादा इंजेक्शन से हो रहे हैं मरीज
एड्स को लेकर सबसे पहली चीज जो दिमाग में आती है वह है असुरक्षित यौन संबंध। इसके लिए महिला सेक्स वर्कर, समलैंगिक, ट्रांस जेंडर, दूसरे राज्यों से आने वाले कामगार और लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर को सबसे ज्यादा संभावित वर्ग में रखा जाता है। मार्च 2020 तक के आंकड़ों के अनुसार राजधानी में इन सभी की कुल संख्या 4.50 लाख है। इनमें करीब 20 फीसदी लोग सावधानी और सुरक्षा के अभाव में एड्स का शिकार हो रहे हैं लेकिन इंजेक्शन से नशा करने वालों में यह और भी तेजी से फैल रहा है।
कुछ जरूरी तथ्य
- सुरक्षित सेक्स के लिए एबीसी: एब्सटेन यानी संयम, बी फेथफुल यानी अपने साथी के प्रति वफादार रहें और कंडोम का प्रयोग करें।
- शराब पीने या ड्रग्स लेने से जांच प्रभावित हो सकती है। यहां तक कि जो लोग एड्स के जोखिमों को समझते हैं और सुरक्षित सेक्स का महत्व भी जानते हैं, वे भी नशे की हालत में लापरवाह हो सकते हैं।
- एसटीआई वाले लोगों को शीघ्र उपचार की तलाश करनी चाहिए।
- प्रयुक्त संक्रमित रेजर ब्लेड, चाकू या उपकरण जो त्वचा को काटते या छेदते हैं, उनमें एचआईवी फैलने का कुछ जोखिम भी होता है।
- एचआईवी पॉजिटिव लोगों को खुद चाहे पता न लगे, फिर भी वे अनजाने में वायरस को दूसरों तक पहुंचा सकते हैं।
एचआईवी रोगियों में कोरोना संक्रमण कम सामान्य और पहले से बीमार मरीजों की तुलना में एचआईवी रोगियों में कोरोना संक्रमण की आशंका कम है। इसी साल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सीरो सर्वे में यह पुष्टि हुई थी जिसमें पता चला कि आबादी की तुलना में एचआईवी रोगियों में कोरोना वायरस का संक्रमण काफी कम देखने को मिला है। दिल्ली और आसपास के राज्यों से एम्स आने वाले एचआईवी रोगियों की एंटीबॉडी जांच करने के बाद यह सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई थी।
पूरे देश में स्थिति
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में एचआईवी संक्रमित मरीजों की संख्या 23.49 लाख थी जोकि अब बढ़कर 24 लाख से अधिक होने का अनुमान है। हालांकि इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 से 2019 के बीच 37 फीसदी मरीजों में कमी भी आई है।
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