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Uphaar Case: Bail Of Convicts Against Established Principles Of Law – उपहार केस : दोषियों का जमानत कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ

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विजय सिंघल
नई दिल्ली। अदालत ने न्यायिक रिकार्ड से छेड़छाड़ के मामले को अत्यंत गंभीर प्रकृति का माना है। अदालत ने कहा यदि ऐसे मामलों में दोषियों की सजा निलंबित कर जमानत दी जाती है तो यह न केवल आपराधिक कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है बल्कि न्यायिक प्रणाली में आम जनता के विश्वास को हिला देता है।
अदालत ने ये टिप्पणी उपहार अग्निकांड मामले में साक्ष्यों से छेड़छाड़ के दोषी अंसल बंधुओं सहित अन्य की सजा निलंबित करने से इनकार करते हुए की।
पटियाला हाउस अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने अपने 44 पृष्ठों के फैसले में कहा मामले की सुनवाई में अत्यधिक देरी भी पीड़ितों के लिए तीव्र पीड़ा और पीड़ा का कारण बनती है। पीड़ितों के अधिकार किसी भी मानदंड से अभियुक्तों/दोषियों के अधिकारों के अधीन नहीं हो सकते।
उन्होंने कहा एक आपराधिक न्याय प्रणाली न केवल कानून से अपनी वैधता को संचालित करती है, बल्कि उस विश्वास से भी अधिक होती है जो जनता में बड़े पैमाने पर होता है। यदि न्यायपालिका ने एक संस्था के रूप में जनता का विश्वास खोना शुरू कर दिया तो लोकतंत्र का हमारा अर्जित मूल गंभीर खतरे में पड़ जाएगा।
अपनी तरह का गंभीर मामला
अदालत ने कहा उनके हाथ में यह मामला अपनी तरह का सबसे गंभीर मामला है। यह अपराध न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए अपीलकर्ताओं/दोषियों की ओर से एक सुनियोजित योजना का परिणाम प्रतीत होता है। जजों को संस्था की उदात्तता को बनाए रखने के लिए कोई उदारता नहीं दिखाने की आवश्यकता है, और न्याय के प्रशासन में आम जनता में विश्वास का सहारा लेना चाहिए।
उन्होंने कहा न्याय की प्रक्रिया में किसी भी तरह का हस्तक्षेप, न्याय मांगने वालों के रास्ते में कोई भी रुकावट कानून का अपमान है और इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। इस मामले में अपराध की प्रकृति ऐसी है कि यह अदालत के कामकाज की इमारत पर हमला है।
अदालत ने बचाव पक्ष के सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि उनके वकीलों ने लंबी बहस के दौरान तर्कों के समर्थन में कई निर्णयों का हवाला दिया लेकिन शासन के सिद्धांत अच्छी तरह से स्थापित हैं और एक समान रहते हैं। प्रत्येक मामले का निर्णय अपने स्वयं के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाता है।
गहरा षड्यंत्र रचा गया
अदालत ने कहा बर्खास्त कोर्ट स्टाफ को अंसल बंधुओं ने ए प्लस सिक्योरिटी एजेंसी में नौकरी दी और इसी प्रकार अन्य को नौकरी दी गई। साक्ष्यों की पूरी चेन से स्पष्ट है कि न्यायिक रिकार्ड से छेड़छाड़ के लिए गहरा षड्यंत्र रचा गया। मुख्य मामले में 16 आरोपी थे लेकिन साक्ष्य नष्ट करने से अंसल व पंवार को फायदा मिलना था अन्य को नहीं।
अदालत ने कहा रही बात 73 वर्षीय गोपाल अंसल व 82 वर्षीय सुशील अंसल के स्वास्थ्य की तो जेल अधीक्षक की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि उनकी हालत सामान्य है। ऐसे में उनका मानना है कि मजिस्ट्रेट ने काफी विचार करने के बाद निर्णय दिया है और वर्तमान में सजा निलंबन का कोई आधार नहीं है।

विजय सिंघल

नई दिल्ली। अदालत ने न्यायिक रिकार्ड से छेड़छाड़ के मामले को अत्यंत गंभीर प्रकृति का माना है। अदालत ने कहा यदि ऐसे मामलों में दोषियों की सजा निलंबित कर जमानत दी जाती है तो यह न केवल आपराधिक कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है बल्कि न्यायिक प्रणाली में आम जनता के विश्वास को हिला देता है।

अदालत ने ये टिप्पणी उपहार अग्निकांड मामले में साक्ष्यों से छेड़छाड़ के दोषी अंसल बंधुओं सहित अन्य की सजा निलंबित करने से इनकार करते हुए की।

पटियाला हाउस अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने अपने 44 पृष्ठों के फैसले में कहा मामले की सुनवाई में अत्यधिक देरी भी पीड़ितों के लिए तीव्र पीड़ा और पीड़ा का कारण बनती है। पीड़ितों के अधिकार किसी भी मानदंड से अभियुक्तों/दोषियों के अधिकारों के अधीन नहीं हो सकते।

उन्होंने कहा एक आपराधिक न्याय प्रणाली न केवल कानून से अपनी वैधता को संचालित करती है, बल्कि उस विश्वास से भी अधिक होती है जो जनता में बड़े पैमाने पर होता है। यदि न्यायपालिका ने एक संस्था के रूप में जनता का विश्वास खोना शुरू कर दिया तो लोकतंत्र का हमारा अर्जित मूल गंभीर खतरे में पड़ जाएगा।

अपनी तरह का गंभीर मामला

अदालत ने कहा उनके हाथ में यह मामला अपनी तरह का सबसे गंभीर मामला है। यह अपराध न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए अपीलकर्ताओं/दोषियों की ओर से एक सुनियोजित योजना का परिणाम प्रतीत होता है। जजों को संस्था की उदात्तता को बनाए रखने के लिए कोई उदारता नहीं दिखाने की आवश्यकता है, और न्याय के प्रशासन में आम जनता में विश्वास का सहारा लेना चाहिए।

उन्होंने कहा न्याय की प्रक्रिया में किसी भी तरह का हस्तक्षेप, न्याय मांगने वालों के रास्ते में कोई भी रुकावट कानून का अपमान है और इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। इस मामले में अपराध की प्रकृति ऐसी है कि यह अदालत के कामकाज की इमारत पर हमला है।

अदालत ने बचाव पक्ष के सभी तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि उनके वकीलों ने लंबी बहस के दौरान तर्कों के समर्थन में कई निर्णयों का हवाला दिया लेकिन शासन के सिद्धांत अच्छी तरह से स्थापित हैं और एक समान रहते हैं। प्रत्येक मामले का निर्णय अपने स्वयं के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाता है।

गहरा षड्यंत्र रचा गया

अदालत ने कहा बर्खास्त कोर्ट स्टाफ को अंसल बंधुओं ने ए प्लस सिक्योरिटी एजेंसी में नौकरी दी और इसी प्रकार अन्य को नौकरी दी गई। साक्ष्यों की पूरी चेन से स्पष्ट है कि न्यायिक रिकार्ड से छेड़छाड़ के लिए गहरा षड्यंत्र रचा गया। मुख्य मामले में 16 आरोपी थे लेकिन साक्ष्य नष्ट करने से अंसल व पंवार को फायदा मिलना था अन्य को नहीं।

अदालत ने कहा रही बात 73 वर्षीय गोपाल अंसल व 82 वर्षीय सुशील अंसल के स्वास्थ्य की तो जेल अधीक्षक की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि उनकी हालत सामान्य है। ऐसे में उनका मानना है कि मजिस्ट्रेट ने काफी विचार करने के बाद निर्णय दिया है और वर्तमान में सजा निलंबन का कोई आधार नहीं है।

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