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Return Of Farmers: Many Families Arrived To Bid Farewell – किसानों की वापसी : विदाई देने के लिए पहुंचे कई परिवार, दिल्ली की सीमाओं पर भावुक रहे पल

सार

नम आंखों के साथ शुरू किया किसानों ने चलना, अब पंजाब में होगा मिलना। मुलाकात के जरिए शुरू हुआ रिश्ता अब फोन कॉल के जरिए रहेगा जारी।

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भाषणबाजी और नारेबाजी से शोरगुल रहने वाला सिंघु बॉर्डर रविवार को गुमसुम नजर आया। आंखों में आंसू व गमगीन दिल के साथ किसानों की घर वापसी स्थानीय लोगों के दिलों में बिछड़ने का दर्द छोड़ गई। जब किसानों के जत्थे ने घरों का रूख किया तो दिल्ली की सीमा पर अपनों के जाने का दर्द लोगों की आंखों से झलक पड़ा।

सिंघु बॉर्डर पर रविवार को कई स्थानीय लोग किसानों को विदाई देने के लिए पहुंचे थे। कुछ पूरे परिवार के साथ तो कुछ अकेले ही किसानों से गले मिलने के लिए अपने-अपने घरों से दौड़ पड़े। गले लगते ही फफक कर रोना और किसानों द्वारा लोगों को चुप कराने का सिलसिला शाम तक चलता रहा। मुलाकातों से शुरू हुआ रिश्ता अब  अब फोन कॉल के जरिए किसानों के साथ बना रहेगा। यही नहीं कुछ परिवारों ने अगले माह पंजाब जाकर किसानों से मिलने की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। 

किसानों को विदाई देने पहुंचे नरेला निवासी इकबाल सिंह ने बताया कि बीते एक साल से पंजाब स्थित अपने घर को नहीं देखा है। क्योंकि, पूरा पंजाब ही दिल्ली की सीमा पर आकर बस गया था। ऐसे में अपनों को छोड़कर आशियाने को देखने की इच्छा भी नहीं हुई। पूरे एक साल के संघर्ष के बाद मिली कामयाबी की खुशी है, लेकिन अपनों के लौटने का दर्द दिल में बाकी रहेगा।

हालांकि, अब पंजाब जाकर आंदोलनकारियों से मिलना होगा। साथ ही फोन कॉल पर भी बात होगी। यह कहते हुए रूंधे गले के साथ इकबाल सिंह की आंखें नम हो गईं। एक अन्य स्थानीय निवासी प्रबजीत सिंह ने कहा कि एक साल पहले पंजाब से किसान सिंघु बॉर्डर पर आकर बसे तो यहां नई दोस्ती परवान चढ़ गई। रोज मिलकर एक साथ सेवा करना और फिर बैठकर लंगर खाना आदत में शामिल हो गया था।

नए लोगों के साथ नए नया रिश्ता कब पुराना हो गया। इस बात का पता ही नहीं चला। किसानों के साथ बीते एक साल में बहुत अच्छा रिश्ता बन गया था। हमें इस बात की खुशी है कि किसानों की जीत हुई है, लेकिन उनके बिछड़ने का गम भी है। हालांकि, परिवार ने किसानों से मिलने की योजना बनाई है और इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है।

विदाई के पल…
दिल्ली आकर यहां के लोगों का बहुत प्यार मिला। स्थानीय लोगों ने भी खूब साथ दिया है। समय-समय पर किसानों की मदद के लिए लोग खड़े रहे हैं। यहां से जाने के बाद दिल्ली के लोगों की यादें दिल में समाई रहेगी। 
-रणजीत सिंह, सुल्तानपुर, पंजाब

यहां के लोगों के साथ बहुत गहरा रिश्ता बन गया था। लोगों से बिछड़ने का गम दिलों में बना रहेगा। दिल्ली वालों से फोन नंबर की अदला-बदली हो गई है। अब यह रिश्ता आगे भी जारी रहेगा।
-बाबा गुरमीत सिंह, तरनतारण, पंजाब

किसानों के साथ गहरा रिश्ता बन गया है। किसानों को जाते देख दुख हो रहा है। लेकिन, किसान अब सुरक्षित अपने घरों में रहेंगे। यह भी अच्छी बात है। हालांकि, फोन कॉल पर किसानों से बातचीत जारी रहेगी।
-इकबाल सिंह, नरेला

परिवार के साथ किसानों से पंजाब मिलने के लिए जाएंगे। किसानों से जो रिश्ता बन गया है। वह आगे भी जारी रहेगा। पूरे परिवार को किसानों के बिछड़ने का दुख है।
-प्रबजीत सिंह, कुंडली

एक साल पहले किसानों के साथ रिश्ता बना था। पूरे साल कभी पंजाब जाने के लिए मन ही नहीं हुआ। लगता था कि पूरा परिवार घर से नजदीक आकर बस गया है। 
-गुरदीप सिंह, नरेला

दिल्ली की सीमाओं से किसानों ने अपने अपने घर के रुख कर लिया, मगर दीवार, होर्डिंग और बैरिकेड्स पर लिखे संदेश, किसान आंदोलन की दास्तां बयां कर रही हैं। तीनों कृषि कानूनों की वापसी के संदेश और किसानों के संघर्ष की कहानियों के मिटने में अभी कुछ वक्त लगेगा। आंदोलन स्थलों पर साफ सफाई हो रही है, मगर घर, दुकानें, फैक्ट्रियों की दीवारों पर लिखे किसानों के लंबे संघर्ष को अभी भी पढ़ा जा सकता है।

किसानों के रवाना होने के बाद सुबह से ही फल, सब्जियां सहित सभी दुकानें खुल गईं। सुबह से खरीदार भी पहुंचने लगे, मगर किसान नहीं थे। हर तरफ किसान आंदोलन से जुड़े संदेशों को पढ़ने के बाद यादें फिर ताजा होती दिखीं। 

टीकरी बॉर्डर पर सुबह से ही रोजाना हजारों की संख्या में किसानों सड़क पर होते थे। मगर, उनके जाने के बाद सड़कों का नजारा बदला हुआ नजर आया। न तो शामियाना और न ही आशियाना बने हैं, सड़कों के किनारे अगर हैं भी हटाने का काम तेजी से चल रहा है। 

380 दिन बाद टोल नाका भी हुआ चालू
टीकरी में सड़क पर वाहनों की आवाजाही शुरू होते ही दक्षिणी दिल्ली नगर निगम का टोल प्लाजा भी खोल दिया गया। इसके खुलते ही वाहनों का आवागमन एक साल बाद फिर शुरू हो गया है। टोल नाके पर तैनात कर्मी फिर से अपनी ड्यूटी पर नजर आए। टोल प्रबंधन को भी सड़क बंद होने से पिछले करीब डेढ़ साल से नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। पहले कोरोना काल में टोल प्लाजा से वाहनों की आवाजाही बंद रही तो आंदोलन के दौरान 380 दिनों तक टोल नाका के बंद होने का असर संचालन करने वाली कंपनी पर पड़ा है। 

मेट्रो में भी ग्रीन लाइन पर कम हुई भीड़
टीकरी बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन स्थल से मेट्रो स्टेशन काफी नजदीक होने की वजह से वहां भी यात्रियों की भीड़ कम हो गई है। आंदोलनकारी किसान अक्सर अपने जरूरी काम के सिलसिले में आने जाने के लिए ग्रीन लाइन पर मेट्रो का इस्तेमाल करते थे। न तो सिंघु बॉर्डर और न ही गाजीपुर बॉर्डर के इतना नजदीक कोई मेट्रो स्टेशन है। आंदोलन के दौरान कई बार मेट्रो स्टेशन भी बंद किए गए थे, मगर आंदोलन के दौरान मेट्रो का भी लोगों ने खूब इस्तेमाल किया। 

आए थे गुरु नानक के दीवाने, काफी कुछ सिखा गए आंदोलन के बहाने। पिछले 380 दिनों से अपने हक की लड़ाई में एकजुट हुए किसानों का सब्र, साहस, शांतिपूर्ण विरोध का तरीका हो या जीत का जज्बा, कई बातें सीखने को मिलीं। टीकरी बॉर्डर पर अपनी दुकान पर बैठी रूबी किसानों के लौटने से मायूस हैं, क्योंकि एक साल बाद किसान दुकान के बजाय अपने घरों में हैं। एक बुजुर्ग किसान ने जब जाते हुए सिर पर हाथ रखकर कहा जब भी जरूरत हो बताना और मेरे घर पर पंजाब जरूर आना। पिता सरीखे बुजुर्ग की बातें सुनकर रूबी की आंखों से आंसू छलक पड़े। बकौल रूबी, पहली बार मुझे ऐसा लगा कि मेरा कोई अपना क्यों जा रहा है। आंदोलनकारी किसानों के चले जाने के बाद हर तरफ मायूसी का माहौल रहा। 

रुबी ने बताया कि पिछले 20 वर्षों से उनकी दुकान है। रोजाना भीड़ भी रहती है, मगर किसान आंदोलन के एक साल में अलग अलग राज्यों से आए किसानों के साथ एक पिता और भाई जैसा रिश्ता बन गया। जाते हुए कई परिवारों ने उन्हें अपना पता देकर अपने घर पर पूरे परिवार के साथ आने का न्यौता भी दिया है। टीकरी बॉर्डर पर जब किसानों का आशियाना हटाया जाने लगा, उस वक्त से ही रुबी को लगने लगा कि कोई अपना जा रहा है। उन्होंने बताया कि इनसे हर दिन कुछ सीखने को मिला। 

..किसानों ने किया सम्मानित, अच्छे विचार हमेशा रहेंगे साथ
रुबी ने बताया कि किसानों ने जाते हुए मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। इसमें गुरमुखी में लिखे संदेश हैं तो गुरु नानक के फोटोग्राफ के तौर पर उनके अच्छे विचारों हमारे जीवन में हमेशा साथ रहेंगे। जब भी उन्हें रोजमर्रा की कोई जरूरी उत्पाद की जरूरत हुई, पूरा करने की कोशिश रही। खाने के लिए मिठाईयां और नमकीन के साथ रोजाना चाय के लिए सैकड़ों किसान पहुंचते थे। यही बैठकर आंदोलन की कहानी रोज सुबह शाम, रविवार से सुनने को नहीं मिली। न तो कोई माइक और न ही कोई संबोधन, एक साल बाद टीकरी बॉर्डर का माळौल एक बार फिर पुराने दिनों की तरफ लौटने की तरफ बढ़ने लगा है।

खालीपन, पहले जैसा माहौल बनने में लग सकता है दो महीने का वक्त 
रुबी के पति महेश ने कहा कि उनके जाने के बाद एक खालीपन से लग रहा है। फिर से ऐसा माहौल शायद फिर न बन सके। दुकान पर ग्राहक भी फिलहाल कम हैं, मगर पहले की तरह बनने में दो महीने तक का वक्त लग सकता है। उन्होंने कहा कि इतने दिनों तक साथ रहने के बाद एक दिन में सड़क साफ हो गई। जहां किसानों के आशियाने होते थे, अब वहां ई रिक्शा और वाहनों के पहिये दौड़ने लगे हैं। 

सफर हो गया आसान, तीन मिनट में 15 मिनट की तय कर सकते हैं दूरी 
मेट्रो से टीकरी बॉर्डर पार करने में पहले 15 मिनट का वक्त लगता था, मगर अब तीन मिनट में इतनी दूरी तय कर सकते हैं। बॉर्डर से करीब एक किलोमीटर तक के दायरे में अब कोई भी निर्माण नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि रहने के लिए तंबू या कुछ पक्के निर्माण भी हटा दिए गए हैं। इन्हें यादगार के तौर पर अपने साथ ले गए। अगर कुछ निर्माण क्षतिग्रस्त हो गए तो उन्हें भी सड़कों से हटा दिए गए हैं। मेट्रो पिलर और आसपास की दीवारों पर किसान आंदोलन से जुड़े संदेशों को अगर न देख सकें तो इस बात का अंदाजा भी नहीं लग रहा था कि एक दिन में इतनी साफ सफाई हो सकती है। सड़कों के किनारे पुलिस के बैरिकेट्स, क्रेन और सफाई के लिए हरियाणा के निगम कर्मी हैं। 

विस्तार

भाषणबाजी और नारेबाजी से शोरगुल रहने वाला सिंघु बॉर्डर रविवार को गुमसुम नजर आया। आंखों में आंसू व गमगीन दिल के साथ किसानों की घर वापसी स्थानीय लोगों के दिलों में बिछड़ने का दर्द छोड़ गई। जब किसानों के जत्थे ने घरों का रूख किया तो दिल्ली की सीमा पर अपनों के जाने का दर्द लोगों की आंखों से झलक पड़ा।

सिंघु बॉर्डर पर रविवार को कई स्थानीय लोग किसानों को विदाई देने के लिए पहुंचे थे। कुछ पूरे परिवार के साथ तो कुछ अकेले ही किसानों से गले मिलने के लिए अपने-अपने घरों से दौड़ पड़े। गले लगते ही फफक कर रोना और किसानों द्वारा लोगों को चुप कराने का सिलसिला शाम तक चलता रहा। मुलाकातों से शुरू हुआ रिश्ता अब  अब फोन कॉल के जरिए किसानों के साथ बना रहेगा। यही नहीं कुछ परिवारों ने अगले माह पंजाब जाकर किसानों से मिलने की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। 

किसानों को विदाई देने पहुंचे नरेला निवासी इकबाल सिंह ने बताया कि बीते एक साल से पंजाब स्थित अपने घर को नहीं देखा है। क्योंकि, पूरा पंजाब ही दिल्ली की सीमा पर आकर बस गया था। ऐसे में अपनों को छोड़कर आशियाने को देखने की इच्छा भी नहीं हुई। पूरे एक साल के संघर्ष के बाद मिली कामयाबी की खुशी है, लेकिन अपनों के लौटने का दर्द दिल में बाकी रहेगा।

हालांकि, अब पंजाब जाकर आंदोलनकारियों से मिलना होगा। साथ ही फोन कॉल पर भी बात होगी। यह कहते हुए रूंधे गले के साथ इकबाल सिंह की आंखें नम हो गईं। एक अन्य स्थानीय निवासी प्रबजीत सिंह ने कहा कि एक साल पहले पंजाब से किसान सिंघु बॉर्डर पर आकर बसे तो यहां नई दोस्ती परवान चढ़ गई। रोज मिलकर एक साथ सेवा करना और फिर बैठकर लंगर खाना आदत में शामिल हो गया था।

नए लोगों के साथ नए नया रिश्ता कब पुराना हो गया। इस बात का पता ही नहीं चला। किसानों के साथ बीते एक साल में बहुत अच्छा रिश्ता बन गया था। हमें इस बात की खुशी है कि किसानों की जीत हुई है, लेकिन उनके बिछड़ने का गम भी है। हालांकि, परिवार ने किसानों से मिलने की योजना बनाई है और इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है।

विदाई के पल…

दिल्ली आकर यहां के लोगों का बहुत प्यार मिला। स्थानीय लोगों ने भी खूब साथ दिया है। समय-समय पर किसानों की मदद के लिए लोग खड़े रहे हैं। यहां से जाने के बाद दिल्ली के लोगों की यादें दिल में समाई रहेगी। 

-रणजीत सिंह, सुल्तानपुर, पंजाब

यहां के लोगों के साथ बहुत गहरा रिश्ता बन गया था। लोगों से बिछड़ने का गम दिलों में बना रहेगा। दिल्ली वालों से फोन नंबर की अदला-बदली हो गई है। अब यह रिश्ता आगे भी जारी रहेगा।

-बाबा गुरमीत सिंह, तरनतारण, पंजाब

किसानों के साथ गहरा रिश्ता बन गया है। किसानों को जाते देख दुख हो रहा है। लेकिन, किसान अब सुरक्षित अपने घरों में रहेंगे। यह भी अच्छी बात है। हालांकि, फोन कॉल पर किसानों से बातचीत जारी रहेगी।

-इकबाल सिंह, नरेला

परिवार के साथ किसानों से पंजाब मिलने के लिए जाएंगे। किसानों से जो रिश्ता बन गया है। वह आगे भी जारी रहेगा। पूरे परिवार को किसानों के बिछड़ने का दुख है।

-प्रबजीत सिंह, कुंडली

एक साल पहले किसानों के साथ रिश्ता बना था। पूरे साल कभी पंजाब जाने के लिए मन ही नहीं हुआ। लगता था कि पूरा परिवार घर से नजदीक आकर बस गया है। 

-गुरदीप सिंह, नरेला

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