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नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने एक निर्माण परियोजना के प्रमोटर सिद्धार्थ चौहान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उसके खिलाफ घर खरीदारों से एकत्र किए गए धन की हेराफेरी और गबन के आरोप में गुरुग्राम स्थित दो परियोजनाओं के सिलसिले में दो एफआईआर दर्ज हैं। अदालत ने प्रमोटर को दी गई अंतरिम सुरक्षा भी वापस ले ली।
मेसर्स सिद्धार्थ बिल्डहोम प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ चौहान ने दो एफआईआर में दो अग्रिम जमानत याचिकाएं दायर की थीं। शेयर पूंजी में उनकी 97 फीसदी हिस्सेदारी है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि आरोपी पीड़ित घर खरीदारों के दावों को हल करने का कोई गंभीर प्रयास करने की बजाय कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। इतना ही नहीं उसने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और मामले में गवाहों को धमकाया।
अदालत ने कहा अग्रिम जमानत देने से न केवल मामले की जांच प्रभावित होने बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में भरोसे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। इस तथ्य को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि यदि आवेदक को अग्रिम जमानत दी जाती है तो वह फिर से सबूतों, गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और उन्हें धमकी दे सकता है।
आरोप है कि चौहान ने लगभग 833 घर खरीदारों को ठगा है और पिछले 7-8 वर्षों से धन होने के बावजूद 2016 से किसी भी परियोजना में कोई पैसा नहीं लगाया।
अदालत ने कहा यह स्पष्ट है कि परियोजना एस्टेला के लिए 338.06 करोड़ रुपये एकत्र किए गए थे, भले ही परियोजना की लागत शुरू में 248 करोड़ रुपये के रूप में अनुमानित की गई थी। बाद में 273 करोड़ रुपये संशोधित किया गया था। अदालत ने कहा इस प्रकार आरोपी कंपनी के पास प्रोजेक्ट एस्टेला के तहत 65.06 करोड़ रुपये अधिक राशि थी।
अदालत ने ये भी कहा कि इसी प्रकार परियोजना एनसीआर ग्रीन, फेज -2 के लिए कुल 224.59 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, जबकि निर्माण की अनुमानित लागत 192.78 करोड़ रुपये थी। उसी के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि परियोजना एनसीआर ग्रीन, फेज -2 के तहत 31.81 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि सुरक्षित की गई थी।
अदालत ने कहा रिपोर्ट से स्पष्ट है कि चौहान ने न केवल घर खरीदारों से अधिक राशि एकत्र की, बल्कि बैंकों से ऋण भी प्राप्त किया। कोर्ट ने कहा जमा किए गए कुल फंड में से ब्याज मुक्त अग्रिम राशि आरोपी कंपनी के सहयोगियों/सिस्टर कंपनियों को दी गई बजाय परियोजनाओं में निवेश करने के।
अदालत ने कहा इस मामले में विभिन्न अधिकारियों द्वारा की गई जांच और ऑडिट से पता चला है कि घर खरीदारों से एकत्र किए गए धन के साथ-साथ बैंकों से लिए गए ऋणों का दो परियोजनाओं के निर्माण में उचित उपयोग नहीं किया गया।
नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने एक निर्माण परियोजना के प्रमोटर सिद्धार्थ चौहान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उसके खिलाफ घर खरीदारों से एकत्र किए गए धन की हेराफेरी और गबन के आरोप में गुरुग्राम स्थित दो परियोजनाओं के सिलसिले में दो एफआईआर दर्ज हैं। अदालत ने प्रमोटर को दी गई अंतरिम सुरक्षा भी वापस ले ली।
मेसर्स सिद्धार्थ बिल्डहोम प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ चौहान ने दो एफआईआर में दो अग्रिम जमानत याचिकाएं दायर की थीं। शेयर पूंजी में उनकी 97 फीसदी हिस्सेदारी है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि आरोपी पीड़ित घर खरीदारों के दावों को हल करने का कोई गंभीर प्रयास करने की बजाय कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। इतना ही नहीं उसने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और मामले में गवाहों को धमकाया।
अदालत ने कहा अग्रिम जमानत देने से न केवल मामले की जांच प्रभावित होने बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में भरोसे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। इस तथ्य को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि यदि आवेदक को अग्रिम जमानत दी जाती है तो वह फिर से सबूतों, गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और उन्हें धमकी दे सकता है।
आरोप है कि चौहान ने लगभग 833 घर खरीदारों को ठगा है और पिछले 7-8 वर्षों से धन होने के बावजूद 2016 से किसी भी परियोजना में कोई पैसा नहीं लगाया।
अदालत ने कहा यह स्पष्ट है कि परियोजना एस्टेला के लिए 338.06 करोड़ रुपये एकत्र किए गए थे, भले ही परियोजना की लागत शुरू में 248 करोड़ रुपये के रूप में अनुमानित की गई थी। बाद में 273 करोड़ रुपये संशोधित किया गया था। अदालत ने कहा इस प्रकार आरोपी कंपनी के पास प्रोजेक्ट एस्टेला के तहत 65.06 करोड़ रुपये अधिक राशि थी।
अदालत ने ये भी कहा कि इसी प्रकार परियोजना एनसीआर ग्रीन, फेज -2 के लिए कुल 224.59 करोड़ रुपये एकत्र किए गए, जबकि निर्माण की अनुमानित लागत 192.78 करोड़ रुपये थी। उसी के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि परियोजना एनसीआर ग्रीन, फेज -2 के तहत 31.81 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि सुरक्षित की गई थी।
अदालत ने कहा रिपोर्ट से स्पष्ट है कि चौहान ने न केवल घर खरीदारों से अधिक राशि एकत्र की, बल्कि बैंकों से ऋण भी प्राप्त किया। कोर्ट ने कहा जमा किए गए कुल फंड में से ब्याज मुक्त अग्रिम राशि आरोपी कंपनी के सहयोगियों/सिस्टर कंपनियों को दी गई बजाय परियोजनाओं में निवेश करने के।
अदालत ने कहा इस मामले में विभिन्न अधिकारियों द्वारा की गई जांच और ऑडिट से पता चला है कि घर खरीदारों से एकत्र किए गए धन के साथ-साथ बैंकों से लिए गए ऋणों का दो परियोजनाओं के निर्माण में उचित उपयोग नहीं किया गया।