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Farmers Return Emotional Atmosphere At The Time Of Farewell – किसानों की घर वापसी : विदाई के वक्त जज्बाती हुआ माहौल, बिछड़ने के गम में छलक पड़े आंसू

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Sun, 12 Dec 2021 04:44 AM IST

सार

मार्मिक पल : सिंघु बॉर्डर पर दिखे स्थानीय निवासियों और किसानों के बीच अनूठे संबंध,  50 हजार के फूल बिछाकर स्थानीय निवासियों ने दी विदाई।
 

घर वापसी से पहले…
– फोटो : पीटीआई

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जंग जीतने की खुशी तो बहुत है, लेकिन बिछड़ने का गम भी कुछ यूं है कि जैसे सब खत्म हो गया हो। हफ्ते में दो-चार बार निकलना होता है यहां से। अब जब जाऊंगा तो बहुत याद आएगी इन सबकी। मेरी वाली सात पुश्तें भी सिख कौम के कर्ज में रहेंगी। मैं इन लोगों का अहसान कभी नहीं उतार सकता। बोलते वक्त संजू शर्मा की आवाज गमगीन थी। वह हकीकतन रो रहे थे। वह दिल्ली में रहते हैं।

संजू शर्मा ने हाथ में एक बैनर था। जिस पर लिखा था…आ मिल लें गले, फिर मिले न मिलें। किसानों की विदाई के लिए उन्होंने 50 हजार के फूल खरीद रखे थे। कुछ इस अंदाज में विदा करने के लिए, जैसे बेटी को घर से विदा किया जा रहा हो। दिलचस्प यह है कि साथ में ही खड़े सिख किसानों की आंखों में भी आंसू थे। वह सब भी रो रहे थे। लग ही नहीं रहा था कि यह सब सालभर की मुलाकात में हुआ। जैसे वर्षों का रिश्ता हो इनमें।

संजू शर्मा इसकी वजह भी बताते हैं…‘मेरी उम्र 45 साल हो गई है, जितना एक साल में सीखा, उतना पूरी उम्र नहीं सीख सका था। इनसे सेवा सीखी, भाईचारे में भागीदारी और निडरता सीखी है। सिंह ऐसे ही नहीं होता है इनके नाम के पीछे। क्या-क्या नहीं बीता, कभी कुछ कभी कुछ, लेकिन सच्चाई के लिए डिगे नहीं।

सिर्फ संजू शर्मा ही नहीं, सिंघु बॉर्डर पर मौजूद ज्यादातर किसानों का कहना है कि वह आज अपने साथ दिल्ली में बिताया एक साल ताउम्र नहीं भूल सकेंगे। यहां बनाए कई रिश्तों को साथ लेकर जा रहे हैं। एक किसान हरजिंदर सिंह कहते हैं कि उनके दिल्ली में कई लोगों से अच्छे संबंध बन गए हैं। दिल्लीवालों ने उनकी और सभी किसानों की बहुत मदद की है, जिसके लिए वह शुक्रगुजार भी हैं और इस भाईचारे को वह आगे लेकर जाएंगे।

दिनभर चलता रहा कील और कंटीले तार हटाने का काम
धरना खत्म करने की घोषणा के बाद दोनों बॉर्डरों से शनिवार को पूरे दिन किसान यहां से जाते दिखाई दिए। किसानों की संख्या कम होते ही पुलिस ने भी बैरिकेड हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। शनिवार को सड़क के एक तरफ बनाए गए सीमेंट बैरियर, सड़क पर लगाई गई कील व कंटीले तार को हटाने का काम दिनभर चलता रहा। इसके लिए मजदूरों और जेसीबी मशीन से मदद ली जा रही है।

पुलिस ने अपने रहने के लिए बनाए गए अस्थायी ढांचा को भी हटा रही है। अक्तूबर माह में टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर एक कैरिजवे पर पैदल व बाइक सवारों की आवाजाही के लिए पांच फुट का रास्ता खोला गया था।  पुलिस अधिकारियों का कहना है कि गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने 13 दिसंबर तक खाली करने का समय मांगा है। उम्मीद है कि सारे बैरिकेड हटाने के बाद 14 दिसंबर की शाम या फिर 15 दिसंबर की सुबह से बॉर्डर को खोल दिया जाएगा।

विस्तार

जंग जीतने की खुशी तो बहुत है, लेकिन बिछड़ने का गम भी कुछ यूं है कि जैसे सब खत्म हो गया हो। हफ्ते में दो-चार बार निकलना होता है यहां से। अब जब जाऊंगा तो बहुत याद आएगी इन सबकी। मेरी वाली सात पुश्तें भी सिख कौम के कर्ज में रहेंगी। मैं इन लोगों का अहसान कभी नहीं उतार सकता। बोलते वक्त संजू शर्मा की आवाज गमगीन थी। वह हकीकतन रो रहे थे। वह दिल्ली में रहते हैं।

संजू शर्मा ने हाथ में एक बैनर था। जिस पर लिखा था…आ मिल लें गले, फिर मिले न मिलें। किसानों की विदाई के लिए उन्होंने 50 हजार के फूल खरीद रखे थे। कुछ इस अंदाज में विदा करने के लिए, जैसे बेटी को घर से विदा किया जा रहा हो। दिलचस्प यह है कि साथ में ही खड़े सिख किसानों की आंखों में भी आंसू थे। वह सब भी रो रहे थे। लग ही नहीं रहा था कि यह सब सालभर की मुलाकात में हुआ। जैसे वर्षों का रिश्ता हो इनमें।

संजू शर्मा इसकी वजह भी बताते हैं…‘मेरी उम्र 45 साल हो गई है, जितना एक साल में सीखा, उतना पूरी उम्र नहीं सीख सका था। इनसे सेवा सीखी, भाईचारे में भागीदारी और निडरता सीखी है। सिंह ऐसे ही नहीं होता है इनके नाम के पीछे। क्या-क्या नहीं बीता, कभी कुछ कभी कुछ, लेकिन सच्चाई के लिए डिगे नहीं।

सिर्फ संजू शर्मा ही नहीं, सिंघु बॉर्डर पर मौजूद ज्यादातर किसानों का कहना है कि वह आज अपने साथ दिल्ली में बिताया एक साल ताउम्र नहीं भूल सकेंगे। यहां बनाए कई रिश्तों को साथ लेकर जा रहे हैं। एक किसान हरजिंदर सिंह कहते हैं कि उनके दिल्ली में कई लोगों से अच्छे संबंध बन गए हैं। दिल्लीवालों ने उनकी और सभी किसानों की बहुत मदद की है, जिसके लिए वह शुक्रगुजार भी हैं और इस भाईचारे को वह आगे लेकर जाएंगे।

दिनभर चलता रहा कील और कंटीले तार हटाने का काम

धरना खत्म करने की घोषणा के बाद दोनों बॉर्डरों से शनिवार को पूरे दिन किसान यहां से जाते दिखाई दिए। किसानों की संख्या कम होते ही पुलिस ने भी बैरिकेड हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। शनिवार को सड़क के एक तरफ बनाए गए सीमेंट बैरियर, सड़क पर लगाई गई कील व कंटीले तार को हटाने का काम दिनभर चलता रहा। इसके लिए मजदूरों और जेसीबी मशीन से मदद ली जा रही है।

पुलिस ने अपने रहने के लिए बनाए गए अस्थायी ढांचा को भी हटा रही है। अक्तूबर माह में टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर एक कैरिजवे पर पैदल व बाइक सवारों की आवाजाही के लिए पांच फुट का रास्ता खोला गया था।  पुलिस अधिकारियों का कहना है कि गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने 13 दिसंबर तक खाली करने का समय मांगा है। उम्मीद है कि सारे बैरिकेड हटाने के बाद 14 दिसंबर की शाम या फिर 15 दिसंबर की सुबह से बॉर्डर को खोल दिया जाएगा।

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