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राष्ट्रपति चुनाव की दौड़: वैंकिया नायडू और आरिफ खान, या फिर साउथ से हो सकता है राष्ट्रपति, या फिर नारी बढ़ाएगी शीर्ष पद की शोभा

Gauravsharma030 दिल्ली, रफ्तार टुडे । राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में वैंकिया नायडू और आरिफ खान पर बीजेपी दाव लगा सकती है या फिर साउथ से हो सकता है राष्ट्रपति का नया उम्मीदवार। या फिर नारी बढ़ाएगी शीर्ष पद की शोभा यह बात बीजेपी शीर्ष के नेताओं में चल रही है क्योंकि उनके व उनके पास इतनी वोट नही है कि वह अपने आप ही बना दें, राष्ट्रपति चुनाव में साउथ के राजनेताओं की जरूरत पड़ेगी।

भारत में लगभग 735 सांसद और 4,128 विधायक हैं, जिनके मतों की गणना राष्ट्रपति चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होती है। नरेंद्र मोदी इसका सामना कैसे करेंगे? हाल ही में हैदराबाद में आरएसएस नेताओं और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच हुई बैठक में इस विषय पर व्यापक चर्चा हुई। इसके बाद आरएसएस के दो दूतों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की।

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भाजपा की अगुआई वाले एनडीए की ओर से प्रस्तुत उम्मीदवार के राष्ट्रपति बनने की संभावना है। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली एनडीए-एक की सरकार के दौरान वर्ष 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति चुने गए थे। उनके बाद 2017 में रामनाथ कोविंद भाजपा प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति चुने गए। हालांकि वास्तविकता यह है कि कोविंद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े रहे पहले राष्ट्रपति हैं।

भाजपा किसको राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाएगी, यह सचमुच उत्सुकता और आश्चर्य का विषय है। क्या इस बार देश में किसी महिला को राष्ट्रपति चुना जाएगा? बहुत संभव है कि इस बार दक्षिण भारत की बारी हो। प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद के बाद जाहिर तौर पर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में किसी दक्षिण भारतीय नेता का नाम उछाला जा सकता है। या प्रधानमंत्री मोदी इस बार पूर्वोत्तर से किसी जनजातीय नेता को अपना उम्मीदवार बनाएंगे?

निश्चित रूप से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को उत्साहित करेगा, खासकर तब, जब आरएसएस 2025 में अपना 100वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। विपक्ष की अनिश्चितता और अव्यवस्था निश्चित रूप से इसमें नरेंद्र मोदी की मदद करेगी। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा कांग्रेस में शामिल होने से इनकार करने के बाद विपक्ष पूरी तरह से अव्यवस्थित है। इसने राष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित विपक्षी उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया।

क्षेत्रीय पार्टियां धीरे-धीरे कांग्रेस से दूरी बना रही हैं। राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया के साथ इसमें गति आ सकती है। खैर कुछ भी हो, रामनाथ कोविंद के उत्तराधिकारी के रूप में अपने किसी उम्मीदवार का चयन भाजपा के लिए कितना आसान और कठिन होगा, यह सवाल फिलहाल राजनीतिक पर्यवेक्षकों के जेहन में है।

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