दिल्ली में अब हर दिन औसतन 90 से 100 लोग कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। इन सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग चार लैब में चल रही है, जिनमें से दो दिल्ली सरकार की हैं। सरकार का दावा है कि उनके पास रोजाना 100 सैंपल की जांच करने की क्षमता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी दिनों में अगर मामले बढ़ते हैं तो सैंपल की संख्या भी बढ़ेगी और उस वक्त लैब ओवरलोड हो सकती हैं।
‘अमर उजाला’ संवाददाता ने जब इन लैब में वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी मांगी तो पता चला कि फिलहाल सभी लैब क्षमता से अधिक कार्य कर रही हैं। फिर चाहे वह लैब में स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या हो या फिर सैंपल जांचने की कुल क्षमता। दिल्ली सरकार की दोनों लैब के पास इस समय सबसे अधिक भार है। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी विदेशों से आने वालों के सैंपल सीक्वेंसिंग के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में और अधिक सैंपल बढ़ने पर इनका पूरा सिस्टम रुक सकता है।
दरअसल, दिल्ली सरकार की दो लैब लोकनायक अस्पताल और वसंत कुंज स्थित आईएलबीएस अस्पताल में हैं। इसी साल जुलाई से यहां जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हुई है। अब तक दोनों ही लैब को मिलाकर करीब तीन हजार सैंपल की सीक्वेंसिंग हो चुकी है, जिनमें 96 फीसदी तक डेल्टा वैरिएंट मिला है। आईएलबीएस अस्पताल के अनुसार, उनके यहां एक से डेढ़ हजार के बीच सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग हुई है। इनके अलावा केंद्र की नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) लैब भी है, जिसकी मदद ली जा रही है। समस्या यह है कि यहां सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, पंजाब और हरियाणा से भी सैंपल भेजे जा रहे हैं।
पहले लैब क्षमता पर करना चाहिए काम
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि राज्यों को पिछले एक साल से अपने यहां जीनोम सीक्वेंसिंग की क्षमता बढ़ाने के लिए कहा जा रहा है। इसी के तहत ही दिल्ली सरकार ने दो लैब अपने यहां बनाई हैं। फिलहाल की स्थिति यह है कि हर सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग करना सिस्टम के हक में नहीं है। यह तभी मुमकिन है जब लैब की क्षमता पर पहले से कार्य किया जाए। केंद्र की ओर से सभी राज्यों की सहायता की जा रही है, लेकिन केंद्र के पास भी सीमित संसाधन हैं, जिनका इस्तेमाल सभी के लिए करना है।
आठ हजार सैंपल की हो पाई है सीक्वेंसिंग
इन्साकॉग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली सहित पूरे देश में जीनोम सीक्वेंसिंग पिछले वर्ष दिसंबर से शुरू हुई है। तब से अब तक करीब आठ हजार सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग दिल्ली में हो पाई है। इसमें दिल्ली सरकार और केंद्र की लैब दोनों के ही आंकड़े शामिल हैं। इनमें से 6503 सैंपल की सीक्वेंसिंग इन्साकॉग सार्वजनिक भी कर चुका है। अगर सैंपल की संख्या बढ़ती है तो दिल्ली को कम से कम छह से सात लैब की आवश्यकता पड़ सकती है।
छह दिन का लगता है समय
आईएलबीएस अस्पताल के मैनेजर डॉ. प्रमोद गौतम के अनुसार, करीब छह दिन की अवधि में कई प्रक्रिया से गुजरते हुए जीनोम सीक्वेंसिंग होती है। सैंपल से आरएनए लेने के बाद वीटीएम सैंपल लैब पहुंचता है। प्यूरिफाइड आरएनए को अलग करने के बाद बाकी कार्य लैब में होता है। इसमें करीब पांच दिन लगते हैं। करीब 200 से 300 टुकड़ों में आनुवांशिक संरचना को तोड़ने के बाद डीएनए में परिवर्तित करते हैं और फिर उसका इंडेक्स में मिलान करते हैं। 384 सैंपल की सीक्वेंसिंग एक बार में होती है, लेकिन इनके ओरिजन को पहचानने के लिए अलग-अलग काम करना पड़ता है। इसलिए भी समय अधिक लगता है। दिल्ली के दक्षिणी जोन से यहां सैंपल आ रहे हैं।
इसलिए है जरूरी
लोकनायक अस्पताल के निदेशक डॉ. सुरेश कुमार का कहना है कि जीनोम सीक्वेंसिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिए वायरस के अलग-अलग परिवर्तन (म्यूटेशन) और उनकी आनुवांशिक पहचान कर पाते हैं। इसके जरिए यह पता चलता है कि मरीज में वायरस का कौन सा म्यूटेशन या फिर वैरिएंट है? इसके अलावा फिलहाल कोई दूसरा विकल्प नहीं है। आरटी-पीसीआर या फिर रैपिड एंटीजन के जरिए संक्रमण की पहचान कर सकते हैं, वैरिएंट की नहीं।
इस समय चार लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग हो रही है। इनमें से दो केंद्र और बाकी दो दिल्ली सरकार की हैं। हमारे पास रोजाना 100 से अधिक सैंपल की सीक्वेंसिंग करने की क्षमता है। दिल्ली में सभी संक्रमित मरीजों के सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग की जा रही है।
– सत्येंद्र जैन, स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली सरकार