RSS News : शतायु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वयं ज्योति रक्षा! _ अखिलेश कुमार बाजपेयी पूर्व जिला प्रचारक रा•स्व•संघ•

दिल्ली, रफ़्तार टुडे। हनुमान चालीसा का पाठ करते समय, एक पंक्ति विशेष रूप से उभरकर आई, *“आपन तेज सम्हारो आपै”*। इसका अर्थ है, _‘स्वयं आप ही अपनी ज्योति का प्रबंधन कर सकते हैं।’_ यह बात अखिलेश कुमार बाजपेयी पूर्व जिला प्रचारक रा•स्व•संघ•, पूर्व विभाग संगठन मंत्री भाजपा ने कही जब गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में यह पंक्ति लिखी थी , तब वे हनुमान जी की आत्मशक्ति और तेजस की रक्षा और प्रबंधन करने की क्षमता का वर्णन कर रहे थे। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (“संघ”) की शताब्दी के उपलक्ष्य में विशेष स्मारक मुद्रा (सिक्का) और डाक टिकट का प्रवर्तन करते देखा, तो लगा कि बाबा तुलसीदास के ये अमर शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ) की कहानी को भी प्रतिध्वनित करते हैं।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा १९२५ में स्थापित, “संघ” कभी भी राजनैतिक संगठन नहीं था। इसका जन्म गहन अपरिहार्यता के कारण हुआ था; एक खंडित हिंदू समाज को संगठित करने और उपनिवेशित भूमि में आत्मसम्मान का पुनर्निर्माण करने के लिए। डॉ. हेडगेवार समझते थे कि स्वाधीनता भले ही राजनैतिक संघर्ष से प्राप्त की जा सकती हो, परन्तु स्वतंत्र भारत को केवल राजनीति से ही संधारणीय नहीं बनाए रखा जा सकता। भारत को सांस्कृतिक पुनरुत्थान, अनुशासित समाज और दृढ़ आत्मविश्वास की आवश्यकता थी, और हिंदुओं को एक ऐसे संगठन की जो उन्हें एक सूत्र में पिरोए।
अखिलेश कुमार बाजपेयी, पूर्व जिला प्रचारक रा•स्व•संघ•, पूर्व विभाग संगठन मंत्री भाजपा ने कहा कि डॉ. हेडगेवार का समाधान अत्यधिक सरल था, और इसलिए सबसे प्रभावी भी। *शाखा*। एक शाखा के लिए बस कुछ लोगों, एक काष्ठ दंड, भगवा ध्वज और प्रार्थना की आवश्यकता होती है। कोई वितंडा नहीं, कोई घोषणापत्र नहीं, कोई धूमधाम नहीं – बस लय, अनुशासन और सौहार्द। इसी साधारण चरित्र ने इसे असाधारण बनाया- विशाल सौ वर्ष पुराना संगठन जो चरित्र निर्माण, व्यक्तिगत अहंकार को द्रवीभूत करने और नेताओं को चुपचाप प्रशिक्षित करने पर केंद्रित है। सौ वर्ष से, वह विनम्र सूत्र अविचल है। सरकारें बनीं हैं और गिरी हैं, विचारधाराएं उभरी और पिटी हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वही रहा है – स्थिर, मौन, भगवा रंग
“संघ” का दर्शन घोषित या प्रकाशित नहीं होता, अपितु उसका पालन किया जाता है। इस दर्शन का पहला आधार है सेवा। देश में कहीं भी, किसी भी आपदा में, चाहे वह मानव निर्मित हो या प्राकृतिक, बाढ़, महामारी, भूकंप, विभाजन या सांप्रदायिक दंगे, प्रायः संघ के स्वयंसेवक ही सबसे पहले पहुंचते हैं और सबसे अंत में जाते हैं। वे प्रशंसा या पुरस्कार की प्रतीक्षा नहीं करते। वे इस विश्वास से प्रेरित होते हैं कि सेवा ही पुरस्कार है। जैसा हनुमान चालीसा की पंक्ति स्मरण कराती है, *‘अपन तेज संवारो अपै’*, ज्योति अपने ईंधन से स्वयं को पोषित करती है।
नागपुर में कुछ युवाओं के साथ श्रीगणेश हुई उन प्रारंभिक शाखाओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज ऐसा बनाया है जो वह है, विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन। संघ परिवार, जैसा कि संघी लोग इसी विचारधारा के तहत काम करने वाली संस्थाओं को कहते हैं, आज हजारों संस्थाओं, भारत भर के दूरस्थ गांवों में स्कूल, चिकित्सालय, आदिवासी कल्याण परियोजनाएं, महिला सशक्तिकरण समूह और भारत की संस्कृति और थाती को संरक्षित करने वाले आंदोलन शामिल हैं। “संघ” का प्रभाव केवल संख्या में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में समुदायों के शांत परिवर्तन में भी दिखाई देता है।
जैसे-जैसे ‘संघ’ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और देश के विभिन्न राज्यों के कई मुख्यमंत्री अपनी संघ के मूल को गर्व से धारण कर रहे हैं। तथापि, राजनैतिक सत्ता से इतनी निकटता होने पर भी, संघ ने अपनी मूल पहचान कभी नहीं खोई है। ‘संघ’ की मूल इकाई आज भी मैदान में शाखा, हवा में लहराता भगवा ध्वज और सादी सफेद कमीज और भूरी पैंट पहने युवाओं द्वारा की जाने वाली सायंकाल की प्रार्थना है।
बहुधा यह प्रश्न पूछा जाता है: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिबंधों, निरंतर अपयश, मिथ्या प्रचार और व्यंग्यचित्रण से कैसे बच पाया है? इसका उत्तर हनुमान चालीसा में निहित है। तुलसीदास के हनुमानजी के दर्शन की तरह, संघ कभी भी उधार के बल पर निर्भर नहीं रहा। इसकी शक्ति भीतर से आती है – अनुशासन, सेवा और धर्म में अटूट विश्वास ।
अपने सौवें वर्ष में प्रवेश करते हुए, ‘संघ’ केवल मील का पत्थर सिद्ध होने वाला संगठन नहीं है। यह इस विचार का जीवंत प्रमाण है: कि जब कोई समाज अपनी लौ की रक्षा करना सीख जाता है, तो कोई भी झंझावात उसे बुझा नहीं सकता।
*आपन तेज सम्हारो आपै!*
यही हनुमान की कहानी है।
यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कहानी है।
*अविचल, प्रकाशमान, शाश्वत ज्योति।*
अखिलेश कुमार बाजपेयी
पूर्व जिला प्रचारक रा•स्व•संघ•
पूर्व विभाग संगठन मंत्री भाजपा



