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To save the patient from shock, the support of loved ones is necessary, people need to be alert and aware | सदमे से मरीज को बचाने के लिए अपनों का साथ जरूरी, लोगों को सतर्क रहने के साथ जागरूक रहने की जरूरत

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नई दिल्ली6 घंटे पहले

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आपात परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के ट्रॉमा का शिकार होने से बचने के लिए तथा ट्रॉमा के लक्षणों और उसके निवारण को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 17 अक्टूबर को विश्व ट्रॉमा दिवस मनाया जाता है। किसी अपने की मृत्यु, किसी खास से दूरी, बीमारी, हिंसा, असफलता, प्राकृतिक आपदा या विकलांगता बहुत से ऐसे कारण हैं जो हमारे जीवन में किसी गंभीर सदमें का कारण बन सकते हैं।

यदि इस अवस्था पर समय रहते नियंत्रण न हो पाए तो कई बार पीड़ित पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर जैसे मनोविकारों का शिकार भी बन सकते हैं। ट्रॉमा जैसी परिस्थिति से स्वयं बचने तथा अपने परिजनों तथा नजदीकियों को बचाने के लिए बहुत जरूरी है की जहां तक संभव हो सके आपात परिस्थितियों में सुरक्षा तथा बचाव दोनों को लेकर लोग जागरूक रहें। सर्वप्रथम विश्व ट्रॉमा दिवस को मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2011 में दिल्ली में की गई थी।

विश्व में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है ट्रॉमा
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ट्रॉमा विश्व भर में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है। ट्रॉमा को किसी एक बीमारी के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसका पीड़ित के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य तथा व्यवहार पर असर पड़ता है। वहीं ट्रॉमा का शिकार होने के लिए जरूरी नही है की आपदा या दुर्घटना का शिकार आप स्वयं या आपका कोई नजदीकी व्यक्ति हुआ हो।

कई बार महामारी, युद्ध, प्राकृतिक आपदा या किसी सामाजिक समस्या के बारे में टीवी या संचार के अन्य माध्यमों से जानने के बाद भी लोगों में डर तथा स्वयं के साथ भी कुछ बुरा होने का आशंका घर करने लगती है जो ट्रॉमा का कारण बन सकती है। जिसका सबसे ताजा उदाहरण हाल ही में कोरोना महामारी के रूप में नजर आया है। जहां महामारी और उसके चलते मृत्यु के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित किया है। इस दौर में फैले डर का असर अभी भी बड़ी संख्या में लोगों के मन मस्तिष्क पर पोस्ट ट्रोमेटिक डिसॉर्डर के रूप में नजर आ रहा है।

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