नई दिल्ली11 घंटे पहले
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दिल्ली दंगे से जुड़े एक मामले में अदालत ने दिल्ली पुलिस को इस बात की जांच करने का आदेश दिया है कि क्या उन पांच आरोपियों को जान-बूझकर बचाने की कोशिश की गई थी, जिन्हें साक्ष्य के अभाव में आरोपमुक्त कर दिया गया। यह मामला पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान दवा की दुकान और घर में लूटपाट के आरोप से जुड़ा है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने मामले में पांच आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में आरोपमुक्त कर दिया था।
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा है कि आरोपियों को इसलिए आरोपमुक्त नहीं किया गया क्योंकि घटना हुई ही नहीं थी या उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया था। बल्कि उन्हें सिर्फ इसलिए छोड़ा गया क्योंकि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य पेश नहीं किया गया। यह टिप्पणी करते हुए अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त को इस मामले में जांच अधिकारी द्वारा जांच के लिए अपनाए गए तौर-तरीकों की जांच करने को कहा है कि ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं अपराधियों को जान-बूझकर तो नहीं बचाया गया।
शिकायकर्ता ने कहा, 23 लाख की हुई थी लूट: यह मामला फिरोज खान की शिकायत पर दर्ज किया गया था। शिकायत के अनुसार, 5 आरोपी दवा की दुकान और घर लूटने वाले दंगाइयों की भीड़ में शामिल थे। फिरोज ने शिकायत दी थी कि 25 फरवरी 2020 को हुई घटना में दंगाई भीड़ ने दवा की दुकान से 22 से 23 लाख रुपये कीमत की दवा और सौंदर्य प्रसाधन सामग्री लूट ली थी।
एकमात्र चश्मदीद ने की थी आरोपियों की पहचान
न्यायाधीश ने पुलिस उपायुक्त को अगली सुनवाई पर अपनी जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा है। अदालत ने कहा कि फिरोज खान मामले में एकमात्र चश्मदीद है, जिसने दावा किया है कि उसने पुलिस द्वारा दिखाई गई तस्वीर में से आरोपियों की पहचान की है। अदालत ने कहा है कि आरोप तय करने के लिए आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और कानूनी तरीके से स्वीकार्य सबूत होने चाहिए, जिसकी इस मामले में कमी है।