
पिलखुवा, हापुड़ / रफ़्तार टुडे। सरस्वती इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, पिलखुवा में मरीज़ों के साथ अनैतिक खिलवाड़ का मामला अब खुलकर सामने आ गया है। बताया जा रहा है कि यहां अक्सर गलत बीमारी बताकर, अधकचरे इलाज के बाद मरीज़ों को मेरठ के बड़े अस्पतालों में रैफर कर दिया जाता है।
यह सब तब हो रहा है जब देशभर में मेडिकल संस्थानों से “नैतिक चिकित्सा” की उम्मीद की जाती है।
दरअसल, कॉलेज प्रशासन मेडिकल छात्रों को “ऑन-ग्राउंड एक्सपीरिएंस” देने के नाम पर मरीज़ों का इलाज उन्हीं छात्रों से करवाता है, जिनकी अभी मेडिकल डिग्री भी पूरी नहीं हुई है। परिणामस्वरूप, कई बार गलत इलाज और गलत डायग्नोज़ का शिकार मासूम मरीज़ बन रहे हैं।
हापुड़ के 77 वर्षीय बुज़ुर्ग बने गलत इलाज का शिकार
हाल ही में हापुड़ निवासी 77 वर्षीय वीर सिंह को पेट दर्द की शिकायत हुई। परिजन उन्हें नज़दीकी होने के कारण सरस्वती मेडिकल कॉलेज, पिलखुवा ले गए।
अस्पताल में जांच और अल्ट्रासाउंड कराने के बाद भी डॉक्टरों ने बीमारी की गलत पहचान की।
जूनियर रेसिडेंट डॉक्टर मोहित सिआग ने बिना स्पष्ट रिपोर्ट के ही कह दिया कि मरीज़ को पेट में अलसर है और स्थिति क्रिटिकल (गंभीर) है। डॉक्टर ने परिजनों को डराते हुए बताया कि “किसी भी वक्त पेट फट सकता है”, इसलिए मरीज़ को तुरंत मेरठ के किसी बड़े अस्पताल में रैफर करें।
एम्स भेजने से अस्पताल ने किया इनकार!
जब मरीज़ के बेटे ने कहा कि वे पिता को एम्स (AIIMS) दिल्ली ले जाना चाहते हैं, तो अस्पताल प्रशासन ने एम्स रैफरल से मना कर दिया।
इस पर अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी दीपक रघु से बात की गई, तो उनका कहना था “किसी मरीज़ को एम्स के लिए रैफर करना हमारे अस्पताल के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या सरस्वती मेडिकल कॉलेज से इंटर्न छात्र एम्स में ट्रेनिंग के लिए जाते हैं, तो उन्होंने “हां” में जवाब दिया।
यानी छात्रों को तो एम्स भेजा जा सकता है, लेकिन गंभीर मरीजों को नहीं — यह दोहरा रवैया हैरान कर देने वाला है।
एम्स में खुली असलियत — अलसर नहीं, मामूली कब्ज़ था कारण
अस्पताल के इनकार के बावजूद वीर सिंह के पुत्र ने अपने पिता को एम्स दिल्ली पहुंचाया।
वहां जांच में सामने आया कि न तो अलसर था, न कोई पेट फटने की संभावना। दरअसल, पेट में दर्द का कारण था – आंत में जमा कठोर मल का टुकड़ा, जो रास्ते में अटक गया था। एम्स के डॉक्टरों ने मामूली दवा दी, और सिर्फ 5 मिनट में मरीज़ पूरी तरह स्वस्थ हो गया।
यह मामला साबित करता है कि सरस्वती मेडिकल कॉलेज में बिना सटीक निदान के गंभीर बीमारियों का हवाला देकर मरीजों को डराया और रैफर किया जाता है।
“सस्ते इलाज का सपना महंगा सौदा बन गया”
स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि यह कोई पहला मामला नहीं है। कई मरीज़ों ने बताया कि वे कम खर्च में इलाज की उम्मीद से सरस्वती मेडिकल कॉलेज आते हैं, लेकिन गलत रिपोर्ट, गलत दवा और अनावश्यक रैफरल के चलते आखिरकार उन्हें मेरठ या दिल्ली के बड़े अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ता है, जिससे उनका खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
एक स्थानीय निवासी अशोक चौधरी ने बताया “यहां डॉक्टर कम, छात्र ज़्यादा हैं। मरीज को प्रैक्टिकल केस की तरह ट्रीट किया जाता है। जब केस बिगड़ता है, तो कह दिया जाता है – मेरठ लेकर जाओ।”
डॉक्टरों के प्रशिक्षण की आड़ में मरीजों पर प्रयोग!
सरस्वती मेडिकल कॉलेज जैसे निजी मेडिकल संस्थानों में “प्रैक्टिकल ट्रेनिंग” के नाम पर मरीज़ों को प्रयोगशाला का हिस्सा बना दिया गया है। मेडिकल काउंसिल के नियमों के अनुसार, किसी भी छात्र को वरिष्ठ डॉक्टर की निगरानी में ही इलाज करने की अनुमति होती है।
लेकिन यहां कई बार देखा गया है कि वरिष्ठ डॉक्टर मौजूद नहीं रहते और इंटर्न या जूनियर रेसिडेंट खुद इलाज संभाल लेते हैं। यह सीधा मेडिकल एथिक्स (चिकित्सकीय नैतिकता) का उल्लंघन है।
प्रशासन और मेडिकल काउंसिल से जांच की मांग
इस घटना के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि सरस्वती मेडिकल कॉलेज में हो रहे अनैतिक चिकित्सकीय कार्यों की जांच होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कॉलेज प्रशासन पर यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी है कि —
1. मरीजों का इलाज कौन कर रहा है — प्रशिक्षित डॉक्टर या छात्र?
2. क्या मरीजों से इस तरह के “ट्रायल ट्रीटमेंट” की अनुमति ली जाती है?
3. और क्यों हर दूसरे केस में मेरठ रैफरल का पैटर्न दिखता है?
सवालों के घेरे में सरस्वती मेडिकल कॉलेज की साख
इस पूरे मामले ने सरस्वती मेडिकल कॉलेज, पिलखुवा की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक तरफ संस्थान खुद को “मेडिकल शिक्षा में अग्रणी” बताता है, वहीं मरीजों के साथ हो रहे ऐसे अनैतिक और लापरवाह व्यवहार ने उसकी विश्वसनीयता को झटका दिया है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि “यहां इलाज की जगह खेल हो रहा है। गरीब मरीज सोचता है सस्ता इलाज मिलेगा, लेकिन उसे गलत निदान और डराने-धमकाने वाली रिपोर्ट मिलती है।”
मरीजों के साथ खिलवाड़ नहीं, सुधार की ज़रूरत
सरस्वती मेडिकल कॉलेज का यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में जवाबदेही की कमी की तरफ इशारा करता है।
अगर चिकित्सा संस्थान ही प्रशिक्षण के नाम पर मरीजों को प्रयोग का माध्यम बना देंगे,
तो यह न केवल चिकित्सा नैतिकता के खिलाफ है, बल्कि इंसानियत के भी विरुद्ध है।
अब ज़रूरत है कि स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (NMC) इस मामले की गहराई से जांच करे और ऐसे संस्थानों पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करे।
जब इस विषय पर सरस्वती मेडिकल कॉलेज के प्रशासन से बात की गई तो उनका नंबर नहीं लगा



