Surajpur Court : “सूरजपुर कोर्ट का बड़ा फैसला! तीनों आरोपियों को सभी आरोपों से मिली राहत — अदालत ने कहा, अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में रहा नाकाम”, अदालत का ऐतिहासिक निर्णय – तीन निर्दोषों को मिली राहत

सूरजपुर जिला कोर्ट, रफ़्तार टुडे।
एक लंबे विचारण और दोनों पक्षों की गहन बहस के बाद गौतम बुद्ध नगर के सिविल जज (जूनियर डिवीजन) एफ.टी.सी-प्रथम, सिद्धार्थ कुमार की अदालत ने एक अहम निर्णय देते हुए तीन आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया। यह फैसला न्याय व्यवस्था में निष्पक्षता का प्रतीक माना जा रहा है।
मामले में वादी पक्ष ने आरोप लगाया था कि तीनों अभियुक्तों ने ज़बरदस्ती घर में घुसकर गाली-गलौज, मारपीट और जान से मारने की धमकी दी थी। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की। लेकिन न्यायालय ने पूरे मामले की गहराई से जांच करने के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को प्रमाणित नहीं कर पाया।
मामला कैसे शुरू हुआ – FIR से लेकर अदालत तक की पूरी कहानी
वादी द्वारा थाना क्षेत्र में दी गई तहरीर के आधार पर पुलिस ने धारा 323, 504, 506 और 452 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज किया था।
पुलिस विवेचक ने घटना स्थल का निरीक्षण कर नक्शा-नजरी तैयार किया, गवाहों के बयान दर्ज किए और सम्पूर्ण विवेचना के बाद आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया।
इसके बाद अदालत ने आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए तीनों अभियुक्तों को विचारण हेतु उपस्थित किया। अभियुक्तों ने न्यायालय के समक्ष आरोपों से इंकार किया और निष्पक्ष विचारण (Trial) की मांग की।
अभियोजन पक्ष की दलीलें – सबूतों और गवाहों का परीक्षण
अभियोजन पक्ष ने अपने केस को साबित करने के लिए कई दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किए जिनमें —
तहरीर,
चिक एफ.आई.आर.,
जी.डी. की नकल,
आरोप पत्र,
नक्शा नजरी, और रपट की प्रतियां शामिल थीं।
इसके साथ ही अभियोजन की ओर से अपने प्रमुख गवाह को परीक्षित कराया गया। लेकिन जब बचाव पक्ष के अधिवक्ता एडवोकेट देवेंद्र चौधरी ने प्रतिपरीक्षण में सवाल उठाए, तो कई तथ्यों पर अभियोजन पक्ष की कहानी डगमगा गई।
दोनों पक्षों की तर्कपूर्ण बहस
दिनांक 20 सितंबर 2025 और 4 अक्टूबर 2025 को न्यायालय में दोनों पक्षों के बीच अंतिम बहसें हुईं।
अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक अभियोजन अधिकारी ने जोरदार दलीलें दीं, जबकि बचाव पक्ष की ओर से एडवोकेट देवेंद्र चौधरी ने न्यायालय के समक्ष तार्किक और साक्ष्य आधारित बहस रखते हुए बताया कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को ठोस सबूतों से प्रमाणित नहीं कर सका।
न्यायालय का अवलोकन – “अपराध सिद्ध नहीं हुआ”
पीठासीन अधिकारी सिद्धार्थ कुमार ने पूरे प्रकरण की समीक्षा करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा है।
न्यायालय ने पाया कि पत्रावली पर उपलब्ध प्रलेखीय साक्ष्य और गवाहियों में आवश्यक सामंजस्य नहीं है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक आरोपों का ठोस प्रमाण प्रस्तुत न किया जाए, तब तक किसी भी अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस आधार पर न्यायालय ने तीनों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।
बचाव पक्ष की प्रतिक्रिया – “न्याय की जीत हुई है”
निर्णय के बाद एडवोकेट देवेंद्र चौधरी ने कहा “यह फैसला न्याय की जीत है। अदालत ने पूरे तथ्यों और साक्ष्यों का गहन परीक्षण कर निष्पक्ष निर्णय दिया है। मेरे मुवक्किलों के लिए यह राहत का क्षण है, क्योंकि उन पर लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद सिद्ध हुए।”
उन्होंने कहा कि यह मामला इस बात का उदाहरण है कि न्यायालय किसी भी अभियुक्त को तभी दोषी ठहराता है जब साक्ष्य पूर्ण रूप से अपराध को सिद्ध करते हैं।
अदालत ने कहा – “साक्ष्य कमजोर, अभियोजन नाकाम”
अदालत ने अपने निर्णय में लिखा कि विचारण के दौरान अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा।
ऐसी स्थिति में अभियुक्तगण को दोषमुक्त करना ही न्यायोचित है। इस आदेश के साथ ही दिनांक 4 अक्टूबर 2025 को तीनों अभियुक्तों को अदालत ने दोषमुक्त (Acquitted) घोषित कर दिया।
कानूनी दृष्टि से क्या मायने रखता है यह फैसला
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में “साक्ष्य के महत्व” को रेखांकित करता है।
सिर्फ आरोप लगाने मात्र से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने साफ कहा कि यदि अभियोजन अपने आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत पेश नहीं करता, तो अभियुक्तों को दोषमुक्त किया जाना चाहिए।
न्याय की जीत, झूठे आरोपों पर विराम
सूरजपुर कोर्ट का यह फैसला न्याय की निष्पक्षता और विधिक व्यवस्था पर लोगों का भरोसा और मजबूत करता है।
तीनों अभियुक्तों को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से मिली यह राहत न केवल उनके लिए बल्कि पूरे समाज के लिए “न्याय के प्रति विश्वास की पुनर्स्थापना” का प्रतीक है।



