कौन होते हैं त्यागी? श्रीकांत प्रकरण और भूमिहार- ब्राह्मण-त्यागी महापंचायत पर सवाल, जानिए क्या है इतिहास
नोएडा, रफ्तार टुडे। क्या त्यागी समाज भूमिहार जाति से जुड़ा हुआ है? इस सवाल का जवाब जब आप ढूंढ़ने जाएंगे तो कई प्रकार की भ्रांतियां आपको सुनने को मिलेंगी। भूमिहारों के इतिहास के आइने में देखेंगे तो पाएंगे कि त्यागी समाज भी इसी जाति से जुड़ा हुआ है। हालांकि, भूमिहार जाति व्यवस्था में नाम के आगे लगाए जाने वाले सरनेम पर ध्यान देंगे तो आपको कई बार कन्फ्यूजन जैसी स्थिति होगी। भूमिहार जाति के शब्दों को अगर देखें तो यह दो शब्दों से जुड़कर बना है- भूमि और हार। यानी भूमि का हार रखने वाले। यह जाति मूल रूप से खेती से जुड़ी हुई है।
किंवदंतियों को आधार मानें तो भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को पराजित कर जो जमीन हासिल की थी, उसे ब्राह्मणों को दे दी। इन ब्राह्मणों ने पूजा-पाठ का कार्य छोड़ कर खेती शुरू कर दी। उन्होंने युद्ध में भी खुद को मांजा।
इसी जाति वर्ग से त्यागी समाज की उत्पत्ति हुई। भूमिहार वर्ग हिंदू धर्म में सवर्ण किसान के रूप में पहचाना जाता है।
त्यागी समाज के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में त्यागी समाज के लोग पाए जाते हैं। बनारस का राजघराना विभूति साम्राज्य यानी काशी नरेश भी त्यागी समाज से जुड़े रहे हैं।
इसके अलावा ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान के हिस्से में भी प्राचीन काल में त्यागी समाज के मोहयाल शाखा के राजाओं का इतिहास रहा है।
अफगानिस्तान के शाही मोहयाल साम्राज्य ने सबसे पहले अरबों को युद्ध में धूल चटाई थी। इसके बाद 300 सालों तक अरब अखंड भारत की तरफ नजर भी नहीं उठा पाए थे।
महाभारत काल से भी जुड़ा है इतिहास
त्यागी समाज का इतिहास महाभारत काल से ही एक जुझारू समाज के रूप में सामने आता है। महाभारत काल में यह समाज मेहनत करने वाला और शक्तिशाली माना जाता रहा है। महाभारत में पांडवों को शरण देने वाला कांपिल्य नगर भी त्यागियों का गांव था।
कांपिल्य नगर महाभारत के समय में पंचाल जनपद की राजधानी थी। इसके राजा द्रुपद थे। प्राचीन काल का पंचाल जनपद गंगा नदी के दोनों तरफ फैला हुआ था।
यजुर्वेद के तैत्तरीय संहिता में इस नगरी का जिक्र कंपिला के रूप में मिलता है। द्रुपद से आचार्य द्रोण ने युद्ध में यह साम्राज्य छीन लिया था। उसी समय से यह इलाका त्यागियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र के रूप में रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी के समाज के लोगों की बड़ी जमींदारी रही है। जमींदारों ने अपने रियासत बनाए थे। वहां उन्होंने अन्य तमाम जातियों को संरक्षण और संवर्द्धन दिया। इस इलाके में बावनी गांवों का अपना इतिहास रहा है। कहा जाता है कि त्यागी समाज के लोग 52 हजार बीघे की रियासत पर अधिकार रखते थे। इन 52 हजार बीघे के गांवों को बावनी गांव के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा तालहैटा, निवाड़ी, असौड़ा रियासत, रतनगढ़, हसनपुर दरबार दिल्ली, बेतिया रियासत, राजा क ताजपुर, बनारस राजपाठ, टेकारी रियासत जैसे प्रमुख रियासत रहे हैं। इससे साबित होता है कि त्यागी समाज भी भूमिहार जाति वर्ग से जुड़ा हुआ है।
त्यागी सरनेम की बात की जाए तो मुसलमान और जातियों में भी यह वर्ग पाया जाता है। त्यागी से कन्वर्टेड मुसलमान पश्चिमी यूपी के कई इलाकों में त्यागी लिखते हैं। वहीं, पूर्वांचल के कुछ इलाकों में का एक तबका अपना सरनेम त्यागी लगाता है। हालांकि, इनका पश्चिमी यूपी के त्यागी समाज से कोई कनेक्शन नहीं है। पिछले दिनों वसीम रिजवी के धर्म परिवर्तन के बाद खुद को त्यागी बताए जाने का मामला सामने आया है। उन्होंने हिंदू धर्म स्वीकार करने के बाद जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी नाम लिखना शुरू कर दिया है।
भूमिहारों में सरनेम का अपना अलग ही इतिहास है। हालांकि, त्यागी समाज के लोग अपने नाम के आगे त्यागी ही लगाते हैं। वैसे भूमिहार जाति के प्रभुत्व की बात करें तो बिहार में इनकी बहुलता सबसे अधिक है। यहां ये हर मंडल में अलग-अलग टाइटल के साथ मिल जाएंगे। मगध प्रमंडल में भूमिहार वर्ग अपने नाम के साथ सिंह और शर्मा सरनेम मुख्य रूप से लगाते हैं। वहीं, मुंगेर प्रमंडल से बेगूसराय तक नाम के आगे सिंह सरनेम लगाया जाता है। समस्तीपुर के इलाके में अमूमन यह वर्ग सिंह, ठाकुर, राय और चौधरी टाइटल लगाता है।
दरभंगा में मिश्रा, छपरा में सिंह एवं कुंवर, शाहाबाद मंडल में तिवारी, कुंवर एवं मिश्रा और तिरहुत एवं मुजफ्फरपुर में ठाकुर, सिंह, सिन्हा, शुक्ला और शाही जैसे टाइटल यह वर्ग लगाता है। इसके अलावा भागलपुर-पूर्णियां इलाके में सिंह, शर्मा, तिवारी, मिश्रा आदि सरनेम लगाया जाता है।
यूपी की बात करें तो यहां भी कई सरनेम दिख जाएंगे। पूर्वांचल के जिलों में भूमिहार जाति के लोग राय, सिन्हा, शर्मा, शाही, पांडेय, प्रधान, उपाध्याय जैसे टाइटल लगाते हैं। यहां यह जाति प्रमुख रूप से गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी, संत कबीर नगर, मऊ, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, प्रयागराज, आजमगढ़ आदि जिलों में पाई जाती है। पश्चिमी यूपी में मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, नोएडा, अमरोहा, बिजनौर आदि इलाकों में यह जाति पाई जाती है। यहां मुख्य रूप से त्यागी सरनेम लगाते हैं।
राजनीतिक रूप से भूमिहार वर्ग काफी सक्रिय रहा है। बिहार की राजनीति में इस वर्ग की काफी दखल थी। वर्ष 1911 की जातीय जनगणना के आधार पर बिहार में भूमिहारों की आबादी कुल आबादी का करीब 5 फीसदी थी। हालांकि, बाद के समय में इस वर्ग की आबादी लगभग उतनी ही रही। अन्य जातियों की आबादी बढ़ने के कारण उनकी जनसंख्या का अंतर होता गया। एक अनुमान के मुताबिक बिहार की आबादी में करीब 3 से 4 फीसदी भूमिहारों की आबादी है। वहीं, यूपी में यह वर्ग छोटे-छोटे पॉकेट में उत्तरांचल और पश्चिमी यूपी में दिखता है। देश की आबादी में यह वर्ग 1 फीसदी से भी कम है। इसके बाद भी जमीन पर दबदबे के कारण यह वर्ग अपने साथ कई अन्य जातियों को साथ लेकर चलता है और वह राजनीतिक रसूख दिखाता रहता है।