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joy of the cancellation of agricultural laws and meeting the family, these farmers are sitting on the border leaving everything | भगीरतानंद बोले – हम उनसे भीख नहीं मांग रहे थे, रमेश मलिक ने कहा- जमीन पर लेटकर काटी रातें

गाजियाबाद11 मिनट पहले

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गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 1 साल से किसान कृषि कानून के खिलाफ धरने पर डटे हैं। - Dainik Bhaskar

गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 1 साल से किसान कृषि कानून के खिलाफ धरने पर डटे हैं।

PM मोदी ने शुक्रवार को 3 कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया है। 26 नवंबर 2020 को दिल्ली के बॉर्डर से शुरू हुई कृषि कानूनों की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने वाले किसानों की आंखों में आज रौनक है। खुशी की एक वजह जहां कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान है तो दूसरी वजह परिवार से मिलने की घड़ी नजदीक आने वाली है, जो एक साल से बिछड़े हुए थे। दैनिक भास्कर ने गाजीपुर बॉर्डर पर पहले दिन से धरने पर बैठे कुछ किसानों से बातचीत की। आप भी पढ़िए…

अब MSP और बिजली बिल की मांग भी पूरी हो

काजीखेड़ा गांव के रमेश मलिक गाजीपुर बॉर्डर के धरने का हिस्सा हैं

काजीखेड़ा गांव के रमेश मलिक गाजीपुर बॉर्डर के धरने का हिस्सा हैं

मुजफ्फरनगर में काजीखेड़ा गांव के 63 साल के रमेश मलिक 22 नवंबर 2020 से गाजीपुर बॉर्डर पर शुरू हुए धरने का हिस्सा हैं। वह बताते हैं कि उस रोज जब पहली दफा बॉर्डर पर आए तो खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ी। शुरुआत में बॉर्डर पर लेटने-बैठने की कोई सुविधाएं नहीं थी। बाद में जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, वैसे-वैसे किसान अपने स्तर से धरने पर सुविधाएं बढ़ाते गए।

रमेश मलिक आगे कहते हैं, पीएम ने कानून वापस लेने का ऐलान किया है तो उम्मीद है कि 29 नवंबर से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में इस फैसले पर मुहर भी लग जाएगी। हालांकि उनका यह भी कहना है कि सरकार को बिजली बिल, लखीमपुर खीरी कांड, एमएसपी पर कानून जैसी किसानों की मांगों को भी पूरा करना होगा।

हमने सर्दी, गर्मी, मच्छर सहे, लेकिन हार नहीं मानी

बालियान गांव के भगीरतानंद बलजोर भी पहले दिन से इस बॉर्डर पर डटे रहे

बालियान गांव के भगीरतानंद बलजोर भी पहले दिन से इस बॉर्डर पर डटे रहे

मुजफ्फरनगर में ही पुर बालियान गांव के 72 साल भगीरतानंद बलजोर भी पहले दिन से इस बॉर्डर पर मौजूद हैं। भगीरतानंद कहते हैं, हमने सर्दी, गरमी, मच्छर सहे। उनकी (सरकार) की और नेताओं की बातें भी सहीं। हमने सबको सहन किया। हम उनसे भीख नहीं मांग रहे।

जो कानून हमारे लिए बनाए गए, हम वे कानून नहीं चाहते। बकौल भगीरतानंद, पहले वह भाजपा के पक्के सपोर्टर थे। संजीव बालियान (मंत्री) और उमेश मलिक (विधायक) उनके बच्चे थे। पर, कृषि कानूनों के के बाद से वे BJP से हट गए हैं।

खीरी के बलकार ने आंदोलन के लिए सब कुछ छोड़ा

बलकार सिंह ने किसान आंदोलन के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया

बलकार सिंह ने किसान आंदोलन के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया

लखीमपुर खीरी से आकर गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे बलकार सिंह बताते हैं कि उन्होंने किसान आंदोलन के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया। परिवार से सैकड़ों किलोमीटर दूर होकर धरने पर बैठे हैं। उनकी इलेक्ट्रॉनिक शॉप है जो सालभर से बंद पड़ी है।

खेतीबाड़ी की भी कोई देखरेख करने वाला नहीं है। वह एक साल का नुकसान झेल लेंगे, लेकिन खेती को बर्बाद नहीं होने देना चाहते। बलकार सिंह के अनुसार, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मोर्चे पर डटे हुए हैं ताकि कोई सरकार आइंदा ऐसे कानूनों को लागू करने का साहस न कर सके।

जब तक कानून रद नहीं, तब तक घर वापसी नहीं

कृष्ण सिंह 1 साल से धरना स्थल पर खाना बना रहे हैं।

कृष्ण सिंह 1 साल से धरना स्थल पर खाना बना रहे हैं।

उत्तराखंड में रुद्रपुर से कृष्ण सिंह वहां चल रहे लंगर में पिछले 1 साल से खाना बनाने के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। कृष्ण सिंह कहते हैं, पीएम मोदी ने अभी सिर्फ टीवी चैनल पर कहा है, कानून रद होना बाकी है। जब तक कानून रद नहीं, तब तक घर वापसी नहीं।

कृष्ण सिंह के अनुसार, शुरुआत में उन्होंने रोजाना एक-डेढ़ हजार लोगों का खाना लंगर में बनाया। अब यह संख्या कुछ कम हो गई है। वजह यह है कि जगह-जगह बैठकें चल रही हैं। इसलिए मोर्चों से लगातार किसान उन बैठकों में जा रहे हैं।

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